तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले के तिरुत्तणी में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई, जहां बुख़ार के लिए दी गई गोली गले में फंस जाने से चार साल के बच्चे की दम घुटने से मौत हो गई.
तिरुत्तणी के पास आर पल्लिकुप्पम गांव के एक बच्चे को बुख़ार आने के बाद परिवार के लोग 18 अगस्त की सुबह उसे तिरुत्तणी के सरकारी अस्पताल ले गए.
वहाँ डॉक्टर ने बच्चे के लिए कुछ दवाएं लिखीं. बच्चे के माता-पिता का कहना है कि उसी दिन रात में उन्होंने अपने बेटे को दवा दी.
लेकिन गोली निगलते समय वह गले में अटक गई और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी. परिजन उसे तुरंत तिरुत्तणी सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे, जहाँ डॉक्टर ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.
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बच्चों को दवा की गोली देते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? क्या बड़ों को भी दवा की गोली या कैप्सूल लेते समय इस तरह का ख़तरा हो सकता है?
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अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के मुताबिक़, "पांच साल से कम उम्र के बच्चों के गले में खाना या कोई छोटी वस्तु फंसने से दम घुट सकता है. अगर सांस की नली में कुछ अटक जाए और हवा का रास्ता बंद हो जाए, तो उनके फेफड़ों और दिमाग़ तक ऑक्सीजन पहुंचना रुक सकता है."
"दिमाग़ को अगर चार मिनट से ज़्यादा समय तक ऑक्सीजन न मिले, तो दिमाग़ को नुक़सान हो सकता है और मौत भी हो सकती है."
जबकि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल केमुताबिक़, "गोली निगलना इतना आसान नहीं है. यह सिर्फ़ छोटे बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि कुछ बड़ों के लिए भी चुनौती होती है. गोली निगलने की कोशिश करने वालों में से हर तीन में से एक को उल्टी या सांस लेने में परेशानी जैसी समस्या होती है."
इस विषय पर ईरोड के शिशु रोग विशेषज्ञ अरुण कुमार ने कहा, "आमतौर पर 6 साल से छोटे बच्चों को टैबलेट देना सही नहीं होता. उन्हें दवा को पीसकर पानी में मिलाकर देना चाहिए. पानी में घुलने वाली दवाएं ही बच्चों के लिए अधिकतर सुझाई जाती हैं."
डॉक्टर अरुण कुमार के मुताबिक़ आमतौर पर, मुंह में थोड़ा पानी लेकर उसके साथ टैबलेट निगलना सबसे बेहतर तरीक़ा है, लेकिन छोटे बच्चों को ऐसा कराना मुश्किल होता है, इसलिए बेहतर है कि गोली को पीसकर पाउडर बनाकर पानी में मिलाकर दी जाए.
उन्होंने कहा कि कुछ दवाएं केवल टैबलेट रूप में ही मिलती हैं और उनका सिरप उपलब्ध नहीं होता, इसलिए कई बार बच्चों के लिए टैबलेट लिखना आम बात है.
उनका कहना है, "यह बताना डॉक्टर का काम है कि बच्चों को दवा कैसे देनी है, लेकिन बच्चों को टैबलेट देते समय सबसे ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़िम्मेदारी माता-पिता की होती है."
बच्चों में दम घुटने और जान जाने के ख़तरे से बचाने के लिए दवाओं को पीसकर पानी में मिलाकर देने की सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन भी देता है.
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हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने एक आर्टिकल में बताया है, "बुज़ुर्गों के लिए भी गोली निगलना मुश्किल हो सकता है, ख़ासकर 65 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए. उम्र बढ़ने के बाद उन्हें ज़्यादा दवाएं लेनी पड़ती हैं, ऐसे में उनके गले में गोली अटककर सांस लेने में दिक़्क़त की संभावना रहती है."
इस आर्टिकल में यह भी बताया गया है कि मितली आना, उल्टी होना और सांस लेने में परेशानी जैसी वजहों से बुज़ुर्ग कई बार दवा लेने से कतराते हैं, जिससे उनकी सेहत और बिगड़ सकती है.
आर्टिकल के मुताबिक़, गोली का आकार, रूप और स्वाद भी निगलने में मुश्किल पैदा करता है. अमेरिका में क़रीब 2 करोड़ लोग मधुमेह की दवा मेटफ़ॉर्मिन लेते हैं, जिसकी टैबलेट का बड़ा साइज़ एक गंभीर समस्या माना जाता है.
डॉ. अरुण कुमार ने कहा, "बुज़ुर्गों को टैबलेट देते समय सावधानी बरतनी चाहिए. बेहतर यही है कि दवा को पानी में घोलकर दिया जाए. इससे गोली निगलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. अगर दवा कैप्सूल रूप में हो, तो उसे भी तोड़कर पानी में मिलाकर दिया जा सकता है."
अगर गले में कुछ फंस जाए तो क्या करें?डॉ. अरुण कुमार ने कहा, "अगर बच्चों या बड़ों के गले में कोई वस्तु फंस जाए और सांस लेने में दिक़्क़त होने लगे तो तुरंत 'हाइम्लिक मेनूवर' नाम की प्राथमिक चिकित्सा करनी चाहिए."
उन्होंने बताया, "इसके लिए मरीज़ के पीछे खड़े होकर दोनों हाथ उसकी कमर के चारों ओर कसकर बांधें. फिर पेट के हिस्से से ऊपर की ओर 5–6 बार तेज़ दबाव डालें. अगर इस तरीक़े से भी गले में फंसी वस्तु बाहर न आए, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए."
गले में किसी भोजन, खिलौने या अन्य वस्तु के फंस जाने से 1960 के दशक में अमेरिका में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही थी. वहाँ 'हाइम्लिक मेनूवर' को साल 1974 में अपनाया गया था.
हालांकि, अरुण कुमार ने कहा कि यह तरीक़ा एक साल से कम उम्र के बच्चों, बेहोश मरीज़ों और गर्भवती महिलाओं पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
डॉक्टर कुमार सलाह देते हैं कि अगर बच्चे की उम्र एक साल से कम हो, तो उसे गोद में लेकर उसकी पीठ पर थपकी देनी चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, "कई स्कूलों में इस प्राथमिक चिकित्सा को सिखाया जा रहा है. इसे सभी को सिखाना चाहिए, क्योंकि यह बहुत आसान तरीक़ा है."
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चेन्नई के एक निजी अस्पताल में पीडियाट्रिक्स विभाग की सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर रेवती का कहना है, "चाहे आप दवा को पीसकर दें या सीधे टैबलेट के रूप में, बच्चों को इसे लेने के लिए कभी भी मजबूर नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से वे डर और घबराहट में आ सकते हैं, जिससे सांस लेने में दिक़्क़त होने का ख़तरा बढ़ जाता है."
उन्होंने सलाह दी कि बच्चों को धीरे-धीरे समझाकर और सिखाकर टैबलेट लेने की आदत डालनी चाहिए.
डॉ. रेवती ने बताया, "कुछ लोग टैबलेट को पानी में घोलकर बच्चों की नाक बंद करके मुंह में डालते हैं, यह बिल्कुल ग़लत और बहुत ख़तरनाक तरीक़ा है."
उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों की सांस लेने की नलियां संकरी होती हैं, इसलिए टैबलेट के गले में फंसने का ख़तरा ज़्यादा होता है, छह साल से कम उम्र के बच्चों को टैबलेट हमेशा पानी में घोलकर ही देनी चाहिए.
वह सलाह देती हैं, "6 से 10 साल की उम्र के बच्चों के लिए दवा को टुकड़ों में तोड़कर या चबाने योग्य टैबलेट देना बेहतर है. 10 साल से ऊपर के बच्चों को टैबलेट निगलने के लिए कहा जा सकता है, लेकिन उसमें भी सावधानी बरतनी चाहिए."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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