पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सूखी और धूल भरी हवाओं वाले इलाक़े चगाई में दुनिया के कुछ सबसे क़ीमती खनिज संसाधन छिपे हुए हैं. इन खनिजों में तांबे और सोने के भंडार भी शामिल हैं.
पाकिस्तान के राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व की राय है कि इन संसाधनों की मदद से अरबों डॉलर का पूंजी निवेश हो सकता है. देश में 'रेको डिक' और 'सेंदक' के बाद हाल ही चगाई में कुछ नई खोज के भी दावे किए गए हैं.
चगाई में खनिज की खोज का कॉन्ट्रैक्ट लेने वाली एक निजी कंपनी नेशनल रिसोर्सेज़ लिमिटेड (एनआरएल) का दावा है कि हाल ही में चगाई में सोने और तांबे के नए भंडार मिले हैं.
पिछले हफ़्ते 'पाकिस्तान मिनरल्स इन्वेस्टमेंट फ़ोरम 2025' के समारोह में नेशनल रिसोर्सेज़ लिमिटेड का कहना था कि चगाई में 'तंग गोर' के इलाक़े में खनिज के साफ़ संकेत मिले हैं.
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कंपनी के प्रमुख मोहम्मद अली टब्बा का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ और पूंजी निवेशक इस अहम प्रोजेक्ट का हिस्सा बनेंगे.
इस समारोह के दौरान 'मारी एनर्जीज़' ने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के इलाक़े उत्तरी वज़ीरिस्तान में एक जगह से गैस और तेल के नए भंडार मिलने का दावा किया है.
'मारी एनर्जीज़' के मुताबिक़ यह उस इलाक़े में चौथी खोज है. यहां से टेस्टिंग के दौरान हर दिन 70 मिलियन घन फ़ीट गैस और 310 बैरल कंडेन्स्ड (गाढ़ा तरल) मिल रहा है.
दो दिन के इस कॉन्फ़्रेंस में पाकिस्तान और तुर्की की सरकारी कंपनियों ने भी एक समझौते पर दस्तख़त किए, जिसके तहत वह समंदर में तेल और गैस की तलाश के लिए साझा बोली लगाएंगीं.
इस समझौते में पाकिस्तान की तीन कंपनियां मारी एनर्जीज़, ओजीडीसीएल और पीपीएल तुर्की की सरकारी कंपनी के साथ मिलकर समुद्री इलाक़ों में खोज का काम करेंगी.
अधिकारियों का दावा है कि पाकिस्तान की धरती में छिपे यह खनिज कभी प्रशासनिक बाधाओं, कभी सुरक्षा की चिंताओं और कभी राजनीतिक नेतृत्व के ध्यान न देने की वजह से निकाले नहीं जा सके हैं.
लेकिन पिछले हफ़्ते एक बार फिर पाकिस्तान की सरकार ने इस संकल्प को दोहराया कि वह इन क़ीमती संसाधनों को काम में लाकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बेहतर करेगी.

इसमें शामिल होने वाले लोग यहां के खनिज में पूंजी निवेश के मौक़े को समझने पहुंचे थे, जिन्हें पाकिस्तान की सरकार 'ट्रिलियन डॉलर्स सेक्टर' कहती है.
इस कॉन्फ़्रेंस का मक़सद पाकिस्तान की एक 'अहम खिलाड़ी' के तौर पर रीब्रांडिंग करनी थी, ख़ास तौर पर उन खनिजों के मामले में, जिन्हें दुनिया भर में 'क्रिटिकल मिनरल्स' कहा जाता है.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने, जिनमें पाकिस्तान का सैनिक नेतृत्व भी शामिल है, इस कॉन्फ़्रेंस को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए 'मील का पत्थर' बताया है.
लेकिन आलोचक यह याद दिला रहे हैं कि ऐसा पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने 'पत्थरों को सोना बनाने' के वादे किए हों.
लेकिन बात केवल वादों और दावों तक सिमटी रहेगी या आगे भी बढ़ेगी? इस बहस में जाने से पहले यह समझ लेते हैं कि आख़िर पाकिस्तान में कौन से क़ीमती खनिज हैं और यह कहां-कहां पाए जाते हैं?
पाकिस्तान खनिजों को अलग-अलग प्रकार में बांटता है. स्ट्रैटेजिक मिनरल्स में तांबा, सोना, लिथियम, रेयर अर्थ मिनरल्स और क्रोमाइट शामिल हैं.
ये इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा क्षेत्र और ग्रीन टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होते हैं. यह राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय पूंजी निवेश के लिए बहुत आकर्षक हैं.
एनर्जी मिनरल्स जैसे कोयला और यूरेनियम ऊर्जा और परमाणु कार्यक्रमों के लिए अहम हैं. औद्योगिक खनिज जैसे नमक, चूना पत्थर, जिप्सम और बेराइट निर्माण और खेती में इस्तेमाल होते हैं.
क़ीमती पत्थर हालांकि आकार में कम मगर मूल्य में ज़्यादा हैं और यह निर्यात से होने वाली आमदनी के लिए अहम हैं .
खनिजों का केंद्र बलूचिस्तानपाकिस्तान के अशांत प्रांत बलूचिस्तान में बड़ी मात्रा और ज़्यादा मूल्य वाले खनिज पाए जाते हैं. इनमें से अधिकतर रणनीतिक इस्तेमाल के खनिज हैं और यही वजह है कि इसे 'पाकिस्तान का खनिज केंद्र' कहा जाता है.
सन 1970 के दशक में ने रेको डिक और सेंदक में सोने और तांबे के भंडारों की खोज की थी.
कई दशक पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ पाकिस्तान ने चगाई में सोने के संभावित भंडार का पता लगाया था, लेकिन कई साल तक यह प्रोजेक्ट क़ानूनी और आर्थिक विवादों में फंसा रहा.
अब कनाडा की एक कंपनी 'बैरिक गोल्ड' के नेतृत्व में यहां से एक बार फिर खनिज निकालने की कोशिश की जा रही है.
साल 2022 के आख़िर में एक नए समझौते के तहत इस प्रोजेक्ट पर दोबारा काम शुरू हुआ. जिसमें बलूचिस्तान सरकार को 25 फ़ीसदी, केंद्र सरकार को 25 फ़ीसदी और कनाडाई कंपनी बैरिक गोल्ड को 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी दी गई है.
इस समझौते के तहत बैरिक गोल्ड ने यहां पूंजी निवेश करने और इस दशक के आख़िर तक उत्पादन शुरू करने का वादा किया है.
अब अधिकारी यह उम्मीद जता रहे हैं कि यहां से साल 2028 तक उत्पादन शुरू हो जाएगा.
स्थानीय मीडिया के अनुसार सऊदी कंपनी मनारा मिनरल्स भी यहां पूंजी निवेश कर सकती है.
बैरिक गोल्ड कॉर्पोरेशन के सीईओ मार्क ब्रिस्टो ने कहा है कि जब रेको डिक प्रोजेक्ट का दूसरा चरण पूरा हो जाएगा तो यहां से सालाना चार लाख टन तांबे का उत्पादन हो सकता है.
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों की मांग बढ़ने और वैकल्पिक स्रोत से बिजली की पैदावार को बढ़ाने और बिजली की मांग में बढ़ोतरी की वजह से आने वाले दिनों में तांबा की अंतरराष्ट्रीय मांग में इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है.
पाकिस्तान में तांबा का उत्पादन बढ़ता है तो इससे उसे बहुत आर्थिक लाभ होगा.
सेंदक में साल 1973 के दौरान तांबे और सोने के भंडार मिलने के बाद यह पाकिस्तान की पहली बड़ी मैटेलिक माइनिंग की कोशिश थी.
एक अनुमान के मुताबिक़ यहां कई सौ मिलियन टन से अधिक कच्चा माल मौजूद है. यह प्रोजेक्ट एक चीनी कंपनी चला रही है.
बलूचिस्तान में केवल तांबे और सोने के भंडार ही नहीं पाए जाते हैं बल्कि यहां अलग-अलग तरह के दर्जनों दूसरे खनिज भी पाए जाते हैं.
यहां क़िला सैफ़ुल्लाह के मुस्लिम बाग़ के पहाड़ी इलाक़े में सदियों से क्रोमाइट निकाला जा रहा है, जो स्टेनलेस स्टील बनाने में इस्तेमाल होता है.
अब चगाई और ख़ुज़दार में लिथियम और रेयर अर्थ मिनरल्स की मौजूदगी के दावे भी किए गए हैं जिन्हें सरकार बड़े रणनीतिक खनिज समझती है.
ख़ुज़दार में 1960 के दशक में जीएसपी ने भारी खनिज बेराइट के बड़े भंडार खोजे थे, जो तेल और गैस की ड्रिलिंग में इस्तेमाल होता है.
इन्हीं चट्टानों में क़लात और मस्तोंग के आसपास फ़्लोराइट के भंडार भी मौजूद हैं.
लसबेला में पाकिस्तान का पहला आधुनिक लेड और ज़िंक का खदान है. इसकी खोज भी जीएसपी ने की और चीन की मदद से यहां काम शुरू किया गया.
बलूचिस्तान के सोर रेंज- देग़ारी, डुकी, मच और ख़ोस्त में कोयले के भंडार भी हैं. यह भंडार कई दशकों तक स्थानीय उद्योगों और रेलवे को ईंधन देते रहे हैं.
हालांकि यह भंडार पंजाब और सिंध की तुलना में छोटे और कम ऊर्जा वाले हैं लेकिन यह हज़ारों मज़दूरों को रोज़गार दे रहे हैं.
बलूचिस्तान में स्थानीय लोग इन संसाधनों में अपना हक़ न मिलने की शिकायत करते हैं और प्रोजेक्ट में पारदर्शिता न होने के आरोप लगाते हैं.
यही आरोप बलूचिस्तान में अशांति और प्रतिरोध की बड़ी वजह बन गए हैं.
पिछले साल आयोजित 'मिनरल्स कॉन्फ़्रेंस' के समय सरकार ने यह दावा भी किया था कि उन्हें ख़ास तौर पर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गैस और कई खनिजों के बड़े भंडार मिले हैं जिनमें खनन की कोशिश की जाएगी.
हालांकि ख़ैबर पख़्तूनख़्वा को लेकर 'माइंस एंड मिनरल्स बिल' हाल ही में विवादों में घिर चुका है.
सूबे में सरकार चला रही पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ और विपक्ष के नेताओं की ओर से इस बिल पर आशंकाएं जताई गई हैं.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के स्वात का पन्ना दुनिया में 'फ़ाइन ज्वैलरी' में एक अलग जगह रखना है. आज भी यहां स्थानीय लोग नदियों में इस उम्मीद में पत्थर छानते हैं कि कोई चमकदार हरा पत्थर उनके हाथ लग जाए.
अधिकारियों के अनुसार स्वात के बाद ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और गिलगित-बल्तिस्तान और हैं.
हुंज़ा में याक़ूत (रक्तमणि), मरदान के कटलांग में गुलाबी टोपाज़, चित्राल में एक्वामरीन, कोहिस्तान में हरा पेरिडॉट और नीलम वैली में नीलम जैसे पत्थर मिले.
पाकिस्तान दुनिया के उन कुछ देशों में शामिल है जहां प्राकृतिक तौर पर पेरिडॉट जैसे दुर्लभ पत्थर मिलते हैं.
हालांकि ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के खनिज केवल क़ीमती पत्थरों तक सीमित नहीं हैं. यहां महमंद और वज़ीरिस्तान में क्रोमाइट, हज़ारा में खाद के लिए फ़ॉस्फ़ेट, शेरवां में साबुन पत्थर और माइका और मालाकंड व हरिपुर में आयरन भी मौजूद हैं.
अधिकारियों का दावा है कि वज़ीरिस्तान के शेंकई इलाक़े में तांबे और सोने के सबूत भी मिले हैं. सरकार की कोशिश है कि उनकी खोज कर यहां खनन किया जाए.
कोहाट में तेल और गैस की खोज के बाद वहां भी कुछ काम चल रहा है जबकि हंगू और करक में कोयले का खनन जारी है.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा मार्बल या संगमरमर के क्षेत्र में बहुत आगे है.
स्वात का सफ़ेद मार्बल और महमंद का 'ज़ियारत व्हाइट' पूरे पाकिस्तान में मशहूर है. इन पत्थरों के खनन और इनकी पॉलिशिंग से हज़ारों लोग रोज़गार पाते हैं.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सरकार ने खनिज क्षेत्र को संगठित करने के लिए मिनरल इकोनॉमिक ज़ोन्स बनाए हैं लेकिन अब यहां एक नया विवाद उस बिल से पैदा हो गया है जिसके तहत सूबे में मिनरल्स और माइनिंग से संबंधित अथॉरिटी बननी है जो लाइसेंसिंग और एक्सप्लोरेशन के नियम- क़ानून बनाएगी.
सिंध में कोयले के भंडार और पंजाब में सॉल्ट रेंज
सिंध, बलूचिस्तान की तरह खनिजों का केंद्र तो नहीं, लेकिन यहां कई अरब टन कोयले के भंडार मौजूद हैं, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े भंडारों में से एक बनाते हैं.
थरपारकर के इलाक़े में दुनिया के सातवें सबसे बड़े लिग्नाइट कोयले के भंडार मौजूद हैं. इनसे बिजली के कई प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं.
चीनी कंपनियां भी 'सीपेक' प्रोजेक्ट के तहत थर में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश कर रही हैं. यहां कई पब्लिक-प्राइवेट मोड के प्रोजेक्ट्स भी जारी हैं.
सरकारी डेटा के अनुसार यहां 185 अरब टन कोयला मौजूद है.
कोयला के अलावा सिंध में दूसरे खनिज भी मौजूद हैं जैसे जिप्सम, चूना पत्थर, नमक और ग्रेनाइट शामिल है.
नंगरपारकर की पहाड़ियों से सफ़ेद और गुलाबी रंग के क़ीमती पत्थर निकाले जा रहे हैं जो कंस्ट्रक्शन के काम में इस्तेमाल होते हैं.
सिंध के तेल और गैस के भंडार भी बहुत अहम हैं, ख़ास तौर पर मारी गैस फ़ील्ड्स. यह संसाधन प्रांत को ऊर्जा का केंद्र बनाते हैं.
पंजाब में नमक, जिप्सम और कोयले के भंडार सॉल्ट रेंज में पाए जाते हैं. चिन्योट में अच्छी क्वालिटी का लोहा और थोड़ा तांबा और सोना भी मौजूद है.
यहां के चूना पत्थर और फ़ॉस्फ़ेट का भी कंस्ट्रक्शन में और खाद बनाने में इस्तेमाल हो रहा है.
ने पाकिस्तान मिनरल्स इन्वेस्टमेंट फ़ोरम की बैठक के दौरान उससे अलग हटकर पाकिस्तान के खनिज क्षेत्र में पूंजी निवेश के लिए अमेरिकी दिलचस्पी दिखाई.
इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास से जारी हुए बयान में एरिक मेयर ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ़ किया है कि खनिजों के विविध और भरोसेमंद स्रोतों को सुरक्षित करना एक रणनीतिक प्राथमिकता है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका खनिज क्षेत्र में पूंजी निवेश, तकनीकी मदद और संसाधनों के ज़िम्मेदारी भरे प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारों और पाकिस्तानी हितधारकों के साथ काम जारी रखे हुए है.
स्थानीय मीडिया के अनुसार,इस कॉन्फ़्रेंस के दौरान पाकिस्तानी और विदेशी कंपनियों के बीच दस से अधिक एमओयू पर दस्तख़त किए गए हैं.
इस कॉन्फ़्रेंस में एक तरफ़ रेको डिक प्रोजेक्ट से जुड़ी कनाडा की कंपनी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और पूंजी निवेश करने वाले संगठनों से लगभग दो अरब डॉलर की फ़ंडिंग लेने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ़ अमेरिका ने भी पाकिस्तान के खनिज क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई है.
चीन पहले ही बेल्ट ऐंड रोड प्रोजेक्ट के ज़रिए इस क्षेत्र में गहरी जड़ें जमा चुका है.
विशेषज्ञों के अनुसार, बाहरी तौर पर कामयाब दिखने वाली 'मिनरल्स कॉन्फ़्रेंस' के बाद सामने आने वाली इन 'सकारात्मक ख़बरों' के बीच यह सवाल ज़रूर उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान सरकार द्वारा इस सेक्टर में नई व्यवस्था लागू करना कुछ नतीजा दे पाएगा या नहीं.
इस वक़्त पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में खनिज उद्योग तीन फ़ीसदी से कुछ ही ज़्यादा योगदान देता है.
विशेषज्ञों की राय में क़ानून और पहले से मौजूद नियमों की पेचीदगियां, लाल फ़ीताशाही और अपारदर्शी लाइसेंसिंग जैसी समस्याएं इस सेक्टर को लगातार नुक़सान पहुंचा रही हैं.
यहां तक कि सेंदक जैसे कामयाब माने जाने वाले प्रोजेक्ट्स में भी कई समस्याएं और आपत्तियां सामने आती रहती हैं.
विश्लेषक दुर्दाना नजम कहती हैं, "हालांकि सरकार का इरादा पक्का लग रहा है लेकिन यह मानना कि केवल इस सेक्टर की कामयाबी से पाकिस्तान की आईएमएफ़ पर निर्भरता ख़त्म हो जाएगी, कुछ ज़्यादा है. खनिज क्षेत्र इस वक़्त पाकिस्तान की जीडीपी का केवल 3.2 फ़ीसद है. इसे आत्मनिर्भरता का आधार बनाने के लिए केवल घोषणाएं और सम्मेलन काफ़ी नहीं होंगे."
'पूंजी निवेश से पहले रुकावटें हटाएं'ध्यान रहे कि पाकिस्तान में पहला 'मिनरल्स समिट' 2023 में हुआ था, जिसमें बैरिक गोल्ड, रियो टिंटो, और बीएचपी बिल्टन जैसे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने हिस्सा लिया था.
दुर्दाना नजम कहती हैं, "असली चुनौती पाकिस्तान के कारोबारी माहौल में है. निवेशक बार-बार उन बातों की चर्चा करते हैं कि अनिश्चित नियम और शर्तें, लाइसेंसिंग में देरी, सुरक्षा जोखिम (ख़ास कर बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में), और पेचीदा टैक्स सिस्टम उन्हें (पाकिस्तान में) पूंजी निवेश से दूर रखते हैं."
वह कहती हैं, "अगर पाकिस्तान सच में खनिज क्षेत्र को सक्रिय बनाना चाहता है तो उसे केवल सम्मेलनों और परियोजनाओं से आगे बढ़कर कारगर क़दम उठाने होंगे. सबसे पहले, सभी प्रांतों में राजनीतिक समन्वय और स्थिरता ज़रूरी है."
"दूसरी बात, खनिज संसाधनों से भरपूर क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था में सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन यह स्थानीय आबादी को साथ लिए बिना मुमकिन नहीं."
"तीसरी बात, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए लाइसेंसिंग, पर्यावरण के नियमों और मुनाफ़ा के बंटवारे में पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए."
दूसरी तरफ़, वरिष्ठ विश्लेषक ज़ाहिद हुसैन कहते हैं कि पाकिस्तान को विदेशी पूंजी निवेश से पहले यहां की रुकावटें दूर करनी होंगी.
उनके अनुसार, "पाकिस्तानी अधिकारियों को ख़ास तौर पर रेयर अर्थ मिनरल्स में अमेरिकी निवेश की उम्मीद है. यह पूंजी निवेश वॉशिंगटन के साथ संबंधों को केवल सुरक्षा मामलों में सहयोग से आगे बढ़ाने में मददगार हो सकता है. हालांकि विदेशी निवेश लाने से पहले कई रुकावटों को दूर करना होगा."
दुर्दाना नजम के अनुसार, "हालांकि एसआईएफ़सी के बनने से ऐसा लगता है कि इन समस्याओं में कमी आई है लेकिन कई विश्लेषक यह भी मानते हैं कि एसआईएफ़सी जैसे अनिर्वाचित संगठनों पर निर्भरता प्रांतीय स्वायत्तता पर गंभीर सवाल उठाती है. इससे इस बात पर फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह तेज़ी से फ़ैसले लेते हैं."
ध्यान रहे कि ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के मुख्यमंत्री ख़ुद ही 'मिनरल्स कॉन्फ़्रेंस 2025' में शामिल नहीं हुए थे. यह सब एक ऐसे वक़्त हो रहा है जब प्रांतीय असेंबली में माइंस ऐंड मिनरल्स बिल पर बहस भी जारी है और सूबे में राजनीतिक दलों का दावा है कि इस बिल के पास होने से बनने वाले प्राधिकरण के ज़रिए संघीय सरकार संसाधनों पर उनके अधिकार छीन लेगी.
दूसरी ओर, बलूचिस्तान और उत्तरी क्षेत्रों जैसे गिलगित-बल्तिस्तान जैसे संसाधनों से मालामाल क्षेत्रों के स्थानीय लोग लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें मुनाफ़े में ज़्यादा हिस्सा दिया जाए, लेन-देन और समझौते पारदर्शी हों, और उनकी संस्कृति और ज़मीन की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
विश्लेषकों के अनुसार पाकिस्तान में सुरक्षा की बढ़ती चिंताएं, बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह की लहर और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में मज़बूत होते आतंकवादी समूह अंतरराष्ट्रीय पूंजी निवेश की राह में बड़ी रुकावट बन सकते हैं.
उनके अनुसार पाकिस्तान में सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता की कमी की वजह से एसआईएफ़सी जैसी संस्थाओं और 'मिनरल्स कॉन्फ़्रेंस' से निवेशकों को देश में लाने की कोशिश कामयाब नहीं हो सकती.
हालांकि, इसी सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने यह आश्वासन दिया कि पाकिस्तान में निवेशकों और उनके प्रोजेक्ट्स को पूरी सुरक्षा दी जाएगी.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की फ़ौज एक मज़बूत सिक्योरिटी फ़्रेमवर्क सुनिश्चित करेगी और निवेशकों के भरोसे और हितों की रक्षा के लिए पहले से क़दम उठाए जाएंगे.
उनका कहना था, "आप पाकिस्तान को एक भरोसेमंद साझेदार मान सकते हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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