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माओवादी नेता बसवराजू के शव को लेकर क्या है चर्चा, अदालत पहुंचा मामला

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image Getty Images बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक सुंदराज पी. ने इस बात से इनकार किया है कि बसवराजू का शव उनके परिवार वालों को नहीं सौंपा जा रहा है

छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित नारायणपुर के ओरछा इलाके में बुधवार को मारे गए सीपीआई माओवादी के महासचिव नंबाल्ला केशव राव उर्फ़ बसवराजू के शव को लेकर विवाद शुरू हो गया है.

मारे गए माओवादियों में से किसी का भी शव, शनिवार की सुबह तक उनके परिजनों को नहीं सौंपा गया है.

तेलंगाना के हनमकोंडा के एक माओवादी विवेक के पिता, दूसरे परिजनों के साथ शुक्रवार की सुबह से शाम तक, नारायणपुर के ज़िला अस्पताल के पोस्टमॉर्टम घर के बाहर प्रतीक्षा करते रहे लेकिन उन्हें जानकारी दी गई कि पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाया है.

केशव राव उर्फ़ बसवराजू के परिजनों ने आरोप लगाया है कि एक तरफ़ छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें उनका शव देने से इनकार कर दिया. वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश की पुलिस ने क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देते हुए शीर्ष माओवादी नेता का शव उनके गृह ज़िले श्रीकाकुलम नहीं लाने की चेतावनी दी है.

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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस से कहा है कि वो नंबाल्ला केशव राव का शव उनके परिवार को सौंप दें.

नंबाल्ला केशव राव के भाई और उनकी मां ने इस मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

हालांकि, छत्तीसगढ़ पुलिस ने माओवादी नेता के शव को नहीं सौंपे जाने की बात से साफ़ इनकार किया है.

बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक, सुंदरराज पी. ने बीबीसी से कहा, "स्थापित क़ानूनी प्रक्रिया के अनुसार, मुठभेड़ के बाद बरामद सीपीआई माओवादी कैडरों के मृत शरीरों की पहचान, पंचनामा और पोस्टमॉर्टम की कार्रवाई की जाती है. मृत शरीरों को किसी भी दावेदार को सौंपना, क़ानूनी प्रक्रिया की पूर्णता और दावेदारों के सत्यापन के पश्चात ही होगा."

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में दायर याचिका को लेकर सुंदरराज पी. ने कहा कि किसी भी न्यायालय में दायर आवेदन के संबंध में जानकारी, ज़रूरी ब्योरे इकट्ठा करने के बाद ही दी जाएगी.

छत्तीसगढ़ पुलिस पर आरोप image SALMAN RAVI/BBC बसवराजू के परिजनों ने आरोप लगाया है कि उन्हें छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर कर दिया गया (सांकेतिक तस्वीर)

बुधवार को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में पुलिस ने एक मुठभेड़ में 27 माओवादियों के साथ, सीपीआई माओवादी के महासचिव नंबाल्ला केशव राव उर्फ़ बसवराजू को मारने का दावा किया था.

इस माओवादी नेता के मारे जाने की आधिकारिक घोषणा बुधवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की थी.

राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसे ऐतिहासिक घटना बताते हुए जानकारी दी थी कि माओवादी संगठन के महासचिव नंबाल्ला केशव राव पर 3 करोड़ 25 लाख रुपये का इनाम था और इस माओवादी नेता के मारे जाने के बाद, माओवादी संगठन की कमर टूट गई है.

इसके बाद इलाके में हो रही तेज़ बारिश के बीच मारे गए माओवादियों का शव भारतीय वायु सेना के चॉपर से ज़िला मुख्यालय नारायणपुर लाया गया, जहां शुक्रवार की शाम मारे गए माओवादियों में से कुछ की पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया पूरी की गई.

इस बीच, मारे गए शीर्ष माओवादी नेता नंबाल्ला केशव राव के परिजनों ने ये आरोप लगाया कि नंबाल्ला केशव राव का शव लेने गए परिजनों को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने राज्य की सीमा से बाहर निकाल दिया.

नंबाल्ला केशव राव के बड़े भाई 72 साल के दिलेश्वर राव ने बीबीसी से फ़ोन पर कहा, "मेरा एक छोटा भाई और दूसरे परिजन बस्तर संभाग के जगदलपुर तक पहुंचे थे, जहां उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उनसे कहा गया कि नंबाल्ला केशव राव का शव किसी को नहीं दिया जाएगा."

image BBC

दिलेश्वर राव ने आरोप लगाया कि इसके बाद बस्तर पुलिस ने परिजनों को छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर लाकर छोड़ दिया.

इस दौरान पूरे समय छत्तीसगढ़ पुलिस की गाड़ियां साथ चलती हुईं यह सुनिश्चित करती रहीं कि वे किसी भी स्थिति में छत्तीसगढ़ की सीमा में नहीं रुक सकें.

दिलेश्वर राव ने कहा, "मैंने या मेरी मां ने या दूसरे घर वालों ने पिछले 45 साल नंबाल्ला केशव राव को नहीं देखा. हमारा कोई संपर्क उससे नहीं था. लेकिन अब जबकि वह मारा जा चुका है तो क्या हमें इतना भी अधिकार नहीं है कि हम उसे देख सकें या उसका अंतिम संस्कार कर गांव में उस जगह कर सकें, जहां पारंपरिक रूप से परिवार के दूसरे सदस्यों का अंतिम संस्कार होता रहा है? क्या मेरी बूढ़ी मां को इतना हक़ नहीं है कि वह अपने बेटे को एक बार देख सके, उसे अंतिम विदाई दे सके?"

दिलेश्वर राव ने उम्मीद जताई कि इन सब मुद्दों पर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में दायर याचिका से उन्हें न्याय की उम्मीद है, जिस पर शनिवार को सुनवाई होगी.

शव की प्रतीक्षा करते रहे परिजन image ALOK PUTUL/BBC मारे गए माओवादी विवेक के पिता अस्पताल के बाहर उनके शव की प्रतीक्षा में

इधर शुक्रवार को मारे गए माओवादियों के शवों का पोस्टमॉर्टम, ज़िला मुख्यालय नारायणपुर के ज़िला अस्पताल में दिन भर चलता रहा.

लेकिन किसी भी माओवादी का शव उनके परिजनों को नहीं सौंपा जा सका है.

इस दौरान मारे गए माओवादियों में से एक, उगेंद्र उर्फ़ विवेक के पिता और मामा, दूसरे परिजनों के साथ पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर सुबह से रात होने तक प्रतीक्षा करते रहे.

पुलिस की जानकारी के अनुसार 30 साल का उगेंद्र उर्फ़ विवेक माओवादी संगठन की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की कंपनी नंबर सात का सदस्य था और उस पर आठ लाख रुपये का इनाम घोषित था.

उगेंद्र उर्फ़ विवेक के परिजनों ने बताया कि उसका असली नाम राकेश था और 2016 में वह माओवादी संगठन में शामिल हुआ था.

उन्हें जानकारी दी गई कि विवेक का पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाया है. शनिवार को पोस्टमॉर्टम करने के बाद, दूसरी क़ानूनी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी और शव सौंपा जाएगा.

अख़बार में बेटे के मारे जाने की ख़बर पढ़ने के बाद उसके पिता और मामा, दूसरे परिजनों के साथ गुरुवार की रात को ही हनमकोंडा के चिंतागट्टू गांव से निकल कर शुक्रवार की सुबह नारायणपुर पहुंचे थे.

हनमकोंडा, 2021 तक वारंगल ज़िले का शहरी हिस्सा था, जिसे बाद में अलग ज़िला बनाया गया.

पेशे से ट्रक ड्राइवर विवेक के पिता ने बीबीसी से कहा, "विवेक पढ़ने में बहुत तेज़-तर्रार था. उसने अरुणोदय डिग्री कॉलेज, हनमकोंडा से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की थी. वहीं से वह पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था. 2016 में पोस्ट ग्रेजुएशन करने की बात कहकर वह हैदराबाद गया और फिर उसके बारे में पता चला कि वह माओवादी संगठन में शामिल हो गया है. 2016 के बाद से हमारा उससे कभी कोई संपर्क नहीं रहा."

उन्होंने कहा कि विवेक के माओवादी संगठन में शामिल होने के बाद उसके बड़े भाई रंजीत ने भी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़ दी और लंबे समय तक अवसाद में रहा और वह इन दिनों वारंगल में ही ऑटो चलाता है.

विवेक का शव लेने आए उनके मामा सारया ने स्वीकार किया कि हिंसा से कोई समस्या हल नहीं हो सकती.

लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि 'केंद्र सरकार जब दुश्मन देश से बात कर सकती है तो अपने देश के लोगों से शांति वार्ता क्यों नहीं करती?'

उन्होंने कहा, "सरकार कहती है कि माओवादी हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करेंगे तब बातचीत की जाएगी. माओवाद का हल निकालना है तो सरकार को लोकतांत्रिक तरीके़ से अपने लोगों के साथ बातचीत करनी ही होगी."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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