सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बीआर गवई पर सोमवार को हमले की कोशिश हुई है.
कोर्ट में मौजूद वकील अनस तनवीर ने बीबीसी संवाददाता उमंग पोद्दार से घटना की पुष्टि की है.
घटना के बारे में जानकारी देते हुए अनस तनवीर ने बताया, "आज सुप्रीम कोर्ट में उस समय थोड़ी देर के लिए अफ़रा-तफ़री मच गई जब एक वकील ने चीफ़ जस्टिस पर हमला करने की कोशिश की. इसके बाद बाहर निकाले जाने के दौरान वकील ने कहा- सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान."
अनस तनवीर का कहना है कि इस घटनाक्रम के दौरान जस्टिस गवई शांत रहे और सुनवाई जारी रखी.
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीओएआरए) और कांग्रेस पार्टी ने हमले की निंदा की है.
हमला करने वाले वकील राकेश किशोर को बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने निलंबित कर दिया है.
एडवोकेट रवि झा भी हमले की इस कोशिश के वक़्त कोर्ट में मौजूद थे.
उन्होंने बीबीसी संवाददाता उमंग पोद्दार से कहा, "वकील ने अपना जूता फेंका और हाथ उठाकर बताया कि जूता उसने फेंका है. जूता चीफ़ जस्टिस और जस्टिस चंद्रन के पीछे जाकर गिरा. तब हमला करने वाले शख़्स ने माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसने सिर्फ़ चीफ़ जस्टिस को निशाना बनाया था. उसको कोर्ट रूम सिक्योरिटी ने डीटेन कर लिया. जिसके बाद चीफ़ जस्टिस ने वकीलों से कहा कि वो इस घटना से विचलित हुए बिना बहस जारी रखें."
बार एंड बेंच के मुताबिक़, "यह घटना उस समय हुई जब मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ मामलों की सुनवाई कर रही थी. सूत्रों के अनुसार, वकील मंच के पास गया और अपना जूता निकालकर न्यायाधीश पर फेंकने का प्रयास किया. हालांकि, अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने समय रहते हस्तक्षेप किया और वकील को बाहर निकाल दिया."
लाइव लॉ का कहना है कि कुछ चश्मदीदों का कहना है कि जूता फेंका गया जबकि कुछ का कहना है कि पेपर रोल फेंका गया.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि राकेश किशोर नामक वकील ने कोर्ट नंबर 1 में कार्यवाही के दौरान सुबह करीब 11:35 बजे अपने स्पोर्ट्स शूज़ निकाले और सीजेआई गवई पर फेंक दिए.
हालांकि, बीबीसी इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करती है.
रोहित पांडेय सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व कार्यवाहक सचिव हैं.
समाचार एजेंसी एएनआई से से बात करते हुए रोहित पांडेय ने कहा, "यह बहुत ही दुखद घटना है. हमला करने वाले वकील 2011 से सुप्रीम कोर्ट बार के सदस्य हैं. बताया जा रहा है कि सीजेआई की ओर से भगवान विष्णु पर किए गए कमेंट से आहत होकर उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है."
दरअसल, 16 सितंबर को सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो के एक मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की मरम्मत और रखरखाव का आदेश देने से जुड़ी अर्ज़ी खारिज कर दी थी.
बेंच ने कहा था कि यह अदालत नहीं बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आता है. बेंच ने इसे 'पब्लिसिटी के लिए दायर याचिका' बताते हुए याचिकाकर्ता से ये कहा था कि 'वह भगवान विष्णु के बड़े भक्त हैं तो फिर उन्हीं से प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं.'
सीजेआई की इस टिप्पणी के बाद विवाद हो गया था. विश्व हिंदू परिषद ने सीजेआई को नसीहत दी थी कि उन्हें अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए.
इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति की मरम्मत की मांग वाली याचिका की सुनवाई में अपनी टिप्पणियों का हवाला देते हुए सीजेआई ने कोर्ट में कहा, "सोशल मीडिया पर तो आजकल कुछ भी चल सकता है. परसों किसी ने मुझे बताया कि आपने कुछ अपमानजनक कहा है."
उन्होंने कहा, "मैं सभी धर्मों में विश्वास रखता हूं और सभी धर्मों का सम्मान करता हूं."
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने तुषार मेहता ने भी कहा, "मैं सीजेआई को पिछले 10 सालों से जानता हूं. वे सभी धर्मों के मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर पूरी श्रद्धा के साथ जाते हैं."
इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणियां केवल इस संदर्भ में थीं कि मंदिर एएसआई के अधिकार क्षेत्र में आता है.
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सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने अपने बयान में कहा, "हम सर्वसम्मति से हाल ही में एक अधिवक्ता की ओर से किए गए उस अनुचित और असंयमित व्यवहार पर गहरी पीड़ा और असहमति व्यक्त करते हैं, जिसमें उन्होंने भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश और उनके साथी न्यायाधीशों के पद और अधिकार का अपमान करने का प्रयास किया."
"ऐसा आचरण बार के सदस्य के लिए अनुचित है. यह न्यायपालिका और वकालत के बीच आपसी सम्मान की नींव को कमजोर करता है."
एससीओएआरए ने आगे कहा कि उसका यह मत है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस घटना का स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू करे, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने और उसकी प्रतिष्ठा को जनता की नज़र में कम करने का एक सोचा-समझा प्रयास है.
कांग्रेस का कहना है कि न्याय के मंदिर में ऐसी घटना होना शर्मनाक है.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने एएनआई से कहा, "सर्वोच्च न्यायालय को लोग न्याय का मंदिर मानते हैं और वहां पर ऐसी घटना होना शर्म का विषय है. कुछ दिन पहले ही चीफ़ जस्टिस ने कहा था कि ये देश बुलडोज़र से नहीं क़ानून से चलेगा. तो मैं समझता हूं कि यह पूरी न्यायपालिका के अपमान का विषय है."
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह इसे न्याय तंत्र पर हमले की तरह देख रही हैं और मामले में जांच की मांग कर रही हैं.
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