– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि 21वीं सदी का भविष्य उसके नेतृत्व और उसकी रणनीतिक सोच से तय होगा। चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक भारत के लिए एक ऐतिहासिक कूटनीतिक जीत के रूप में सामने आई है। इस बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की गई है, साथ ही आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का संकल्प भी लिया गया। खास बात यह रही कि यह सब पाकिस्तान की मौजूदगी में हुआ, जो लंबे समय से आतंकवाद को संरक्षण देने के आरोपों से घिरा रहा है।
तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद पर कड़ा प्रहार किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “आतंकवाद शांति की राह में सबसे बड़ा खतरा है।” पाकिस्तान का नाम लिए बिना पीएम मोदी ने सीमापार आतंकवाद पर सख़्त चेतावनी दी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत पिछले चार दशकों से आतंकवाद का दर्द झेल रहा है, लेकिन आज का भारत न नया है, न कमज़ोर, बल्कि हर चुनौती का डटकर सामना करने वाला है।
पीएम मोदी ने एससीओ देशों को चेताया कि आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद पूरे क्षेत्र की शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। उन्होंने कहा कि भारत न केवल आतंक के खिलाफ खड़ा है बल्कि अल-कायदा से जुड़े नेटवर्क के खिलाफ संयुक्त जानकारी अभियान भी चला रहा है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया कि “सुरक्षा, शांति और स्थिरता ही विकास की आधारशिला हैं। आतंकवाद एक वैश्विक चुनौती है, और इसका समाधान भी वैश्विक एकजुटता से ही होगा।”
पहलगाम हमले की निंदा
बैठक के बाद सभी सदस्य देशों ने जिस तरह आतंकवाद की भर्त्सना की और विशेष रूप से पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख किया, वह भारत के लिए बड़ी सफलता है। घोषणापत्र में साफ कहा गया कि मृतकों और घायलों के परिवारों के प्रति सभी सदस्य देशों की गहरी संवेदना है और ऐसे हमलों को अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए। यहां देखने में आया कि पाकिस्तान पूरी तरह अकेला पड़ गया। वर्षों से पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों पर पर्दा डालने की कोशिश करता रहा है, लेकिन इस बार रूस और चीन जैसे बड़े देशों की मौजूदगी में पाकिस्तान को करारा झटका लगा है।
आतंकवाद पर भारत की नीति का समर्थन
भारत लगातार यह कहता आया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। आतंकी हमले को “अच्छा” और “बुरा” कहकर अलग-अलग खेमों में बांटना खतरनाक है। एससीओ के घोषणापत्र में पहली बार यही बात दर्ज की गई। इसमें कहा गया कि आतंकवादियों की सीमा पार गतिविधियों सहित सभी रूपों में आतंकवाद की निंदा की जाती है और वैश्विक समुदाय से एकजुट होकर इसके खिलाफ काम करने का आह्वान किया गया। यह भारत की वह लाइन है जो अब अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र का हिस्सा बन चुकी है।
घोषणापत्र में कहा गया कि सभी सदस्य देश आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि आतंकवाद का मुकाबला करने में प्रत्येक संप्रभु राष्ट्र और उसके सक्षम प्राधिकारियों की भूमिका का सम्मान किया जाएगा। यह भारत की उस नीति से मेल खाता है जिसमें वह राष्ट्रीय संप्रभुता और आंतरिक सुरक्षा को सर्वोच्च मानता है।
वैश्विक ताकत के रूप में भारत की स्थिति
भारत की इस कूटनीतिक सफलता को महज एक घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह भारत के वैश्विक शक्ति बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है। एससीओ जैसे मंच पर, जहां रूस, चीन, मध्य एशियाई देश और पाकिस्तान मौजूद हों, वहां भारत की बात को मान्यता मिलना भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय हैसियत को दर्शाता है। आज भारत सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि विश्व राजनीति का अहम ध्रुव बन चुका है।
दरअसल, इसकी वजह है दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होना, रक्षा और तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, अंतरिक्ष में अद्वितीय उपलब्धियां और वैश्विक मंचों पर संतुलित कूटनीति। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शक्तिशाली भारत का सपना अब जमीन पर उतरता दिखा। कूटनीति के मोर्चे पर भारत अब किसी ब्लॉक या गुट का हिस्सा नहीं, बल्कि स्वतंत्र और निर्णायक आवाज है। यह घटनाक्रम भारत की कूटनीतिक सोच और वैश्विक दृष्टिकोण का उदाहरण है। आज भारत का संदेश साफ है, आतंकवाद के खिलाफ कोई दोहरा रवैया नहीं चलेगा। शक्तिशाली भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की शांति और स्थिरता के लिए खड़ा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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