एक युवा विकास मेंटर ने हाल ही में टेलीविजन पर प्रसारित विज्ञापनों के बारे में अपनी चिंताओं को साझा किया है। उनका कहना है कि ये विज्ञापन बच्चों में डर पैदा कर रहे हैं। भारतीय टेलीविजन पर कई विज्ञापन ऐसे हैं जो छोटे बच्चों को इतना डरपोक बना रहे हैं कि वे कोकरोच और मच्छरों से भी डरने लगे हैं। उदाहरण के लिए, एक विज्ञापन में एक बच्चा चिल्लाता है कि 'मां, कोकरोच आ गया है', और उसकी मां हिट स्प्रे लेकर आती है। इससे यह संदेश मिलता है कि कोकरोच केवल इसी स्प्रे से मारा जा सकता है।
जब मच्छरों की बात आती है, तो मां अपने बच्चे को आल आउट के बिना सुरक्षित नहीं मानती। यह दर्शाता है कि विज्ञापनों का प्रभाव बच्चों पर कितना गहरा है। हमारी प्राधिकृत संस्थाओं को चाहिए कि वे इन विज्ञापनों का सही मूल्यांकन करें और केवल उन विज्ञापनों को प्रसारित करें जो बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित न करें।
क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम अपने लाभ के लिए बच्चों को किस दिशा में धकेल रहे हैं? क्या हम उन्हें डराने वाले विज्ञापनों के माध्यम से कमजोर बना रहे हैं? शहरी परिवारों में बच्चों को अधिक सहारा देने के कारण ये विज्ञापन माता-पिता की मानसिकता का फायदा उठा रहे हैं। इससे बच्चे सामान्य कीटों से भी डरने लगे हैं। क्या यह सही है कि हम बच्चों को इस तरह से बड़ा कर रहे हैं? क्या हमें उन्हें निर्भीक और मजबूत नहीं बनाना चाहिए?
आजकल माता-पिता अपने बच्चों को सामाजिक कार्यक्रमों में जाने से रोकते हैं। यदि बच्चे अपनी इच्छा से जाते हैं, तो माता-पिता उनसे सवाल करते हैं कि उनका वहां क्या काम था। क्या हम अपने बच्चों को हमेशा डराते रहेंगे और उन्हें सामाजिक बनने से रोकेंगे? हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे संस्कारित, सामाजिक और बहादुर बनें, लेकिन ऐसा तब संभव है जब हम उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करें। आइए हम सभी मिलकर ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए खड़े हों और अपने बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए सकारात्मक वातावरण बनाएं।
जय हिंद, वंदे मातरम
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