New Delhi, 30 अगस्त . राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है. यह आंकड़ा पिछले वर्ष की समान अवधि में दर्ज 6.5 प्रतिशत की तुलना में उल्लेखनीय सुधार दर्शाता है.
इस बेहतर प्रदर्शन ने अर्थशास्त्रियों और उद्योग विशेषज्ञों के बीच उत्साह पैदा किया है, वे इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत मान रहे हैं.
सीआईआई के वरिष्ठ समिति सदस्य और सीआईआई एमएसएमई काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष अशोक सहगल ने इस वृद्धि को उत्साहजनक बताया. उन्होंने कहा, “7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर देखना बेहद सकारात्मक है. इसके पीछे दो प्रमुख कारक हैं. पहला, वैश्विक स्तर पर टैरिफ लागू होने की आशंका के चलते निर्यातकों ने समय सीमा से पहले अधिक से अधिक निर्यात करने के लिए गतिविधियां तेज की. दूसरा, यह वृद्धि व्यापक आधार पर हुई है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो टैरिफ से सबसे अधिक प्रभावित थे.”
उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि विकास व्यापक आधार पर हुआ है. यदि आप विशिष्ट 7.8% संख्या को देखें तो आप पाएंगे कि विकास कुछ ऐसे क्षेत्रों से आया है जो टैरिफ से सबसे अधिक प्रभावित थे. निर्यात में वृद्धि ने अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की है.
आर्थिक विशेषज्ञ प्रोफेसर यशवीर त्यागी ने भी इस उपलब्धि की सराहना की. उन्होंने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है. 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर पहले के अनुमानों से कहीं अधिक है, जो एक सकारात्मक संकेत है. यह दर्शाता है कि वैश्विक और घरेलू चुनौतियों के बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना हुआ है. यह वृद्धि नीतिगत सुधारों का परिणाम है. यह उपलब्धि भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.”
सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सुरेश भाई परदवा ने इस वृद्धि को अच्छे मानसून और कृषि उत्पादन में वृद्धि से जोड़ा.
उन्होंने कहा, “पिछले वर्ष की तुलना में इस बार पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है. अच्छे मानसून ने कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रहा.”
उन्होंने आगे बताया कि अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनके संयुक्त प्रयासों ने इस वृद्धि को संभव बनाया है. यह वृद्धि दर भारत की आर्थिक नीतियों, बढ़ते निवेश और वैश्विक व्यापार में इसकी मजबूत स्थिति को दर्शाती है. हालांकि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और मुद्रास्फीति जैसे जोखिमों को देखते हुए नीतिगत सतर्कता बरतने की आवश्यकता है.
जीएम विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. उमा चरण पति ने इस वृद्धि को एक “सकारात्मक और अपेक्षित परिणाम” बताया, जो मजबूत व्यापक आर्थिक बुनियादी ढांचे और मोदी सरकार के “सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन” एजेंडे के तहत एक दशक के सुधारों पर आधारित है.
उन्होंने बताया कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) ने ग्रामीण आय को मजबूत किया है, जबकि 2022-23 से पूंजीगत व्यय में भारी वृद्धि ने बुनियादी ढांचे पर आधारित विकास को बढ़ावा दिया है. खुदरा मुद्रास्फीति का 1.55 प्रतिशत तक गिरना बढ़ती उत्पादकता और मजबूत क्रय शक्ति को दर्शाता है, जिससे खपत में वृद्धि हो रही है.
डॉ. पति ने यह भी बताया कि जीएसटी संग्रह साल-दर-साल (जुलाई 2024-जुलाई 2025) 10.7 प्रतिशत बढ़ा है, जो जनता के विश्वास को दर्शाता है.
उन्होंने आगे कहा, “इस साल अच्छा मानसून और बंपर फसल की संभावना आने वाले महीनों में विकास को और तेज़ कर सकती है.”
–
एकेएस/डीएससी
You may also like
`आ` गया पानी से चलने वाला Bajaj Chetak Hydrogen Scooter, 1 लीटर में दौड़ेगा 280Km, महज 20000 में बना सकते है अपना…
हरिद्वार में तिलक सेवा, स्वर्ण मंदिर में लंगर…राजस्थान से भागी लड़की की अनसुनी दास्तान सुनकर उड़ जाएंगे होश
'सरकार के मुंह पर तमाचा...' SI भर्ती रद्द होने पर सचिन पायलट की भजनलाल सरकार को खरी-खरी, जाने क्या बोले पूर्व डिप्टी सीएम
महाभारत के श्राप: कैसे इन अभिशापों ने बदल दी इतिहास की धारा?
क्रिकेट` में ही नहीं बिजनेस में भी माहिर हैं ये 5 क्रिकेटर इन बड़ी हस्ती का नाम है शामिल