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जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद अब नहीं मिलेगा ऑनलाइन, कानून मंत्री ने संसद में दी सफाई

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ओडिशा के प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घोषणा ने देशभर के श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित किया है। अब मंदिर का महाप्रसाद ऑनलाइन नहीं मिलेगा। इस निर्णय को लेकर संसद में सवाल उठाए गए, जिस पर केंद्र सरकार की ओर से स्पष्ट जवाब दिया गया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विषय पर संसद में बयान देते हुए कहा कि महाप्रसाद की बिक्री को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाने का फैसला पूरी तरह मंदिर प्रशासन और राज्य सरकार के अधीन है।

क्या है महाप्रसाद और क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर न केवल ओडिशा, बल्कि पूरे भारत की आस्था का केंद्र है। यहां प्रतिदिन बनने वाला ‘महाप्रसाद’ भक्तों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है। यह प्रसाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को अर्पित किया जाता है, और फिर श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। इसे ‘नैवेद्य’ के रूप में पहले देवताओं को चढ़ाया जाता है, जिससे यह महाप्रसाद बनता है।

महाप्रसाद की शुद्धता, विधि और धार्मिक परंपराएं इसे आम भोजन से अलग बनाती हैं। यही कारण है कि मंदिर प्रशासन इस पवित्र अन्न के वितरण को अत्यंत सतर्कता से नियंत्रित करता है।

क्यों लिया गया ऑनलाइन बिक्री रोकने का निर्णय?
हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी के दौरान कई मंदिरों ने अपने प्रसाद और पूजा सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध करानी शुरू की थीं। श्री जगन्नाथ मंदिर में भी ऑनलाइन माध्यम से महाप्रसाद डिलीवरी की सुविधा शुरू की गई थी ताकि देश के अन्य हिस्सों में बैठे भक्त भी इसका लाभ उठा सकें।

लेकिन अब मंदिर प्रशासन ने ऑनलाइन वितरण को स्थगित करने का निर्णय लिया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “जगन्नाथ मंदिर एक स्वतंत्र धार्मिक संस्थान है और वहां के सभी निर्णय मंदिर कमेटी और राज्य सरकार के तहत लिए जाते हैं। महाप्रसाद की ऑनलाइन बिक्री को बंद करने का फैसला उसी प्रशासनिक स्वायत्तता के अंतर्गत लिया गया है।”

क्या कहते हैं श्रद्धालु और धर्माचार्य?
श्रद्धालुओं में इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। एक ओर जहां कुछ भक्त इसे महाप्रसाद की शुद्धता और परंपरा की रक्षा के लिए जरूरी कदम मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई लोगों का मानना है कि ऑनलाइन सेवा से दूर-दराज के लोग भी आस्था से जुड़ पा रहे थे।

धर्माचार्यों का मानना है कि महाप्रसाद सिर्फ पवित्र स्थान पर उपस्थित होकर ही ग्रहण करना सर्वोत्तम होता है। मंदिर परिसर में बने ‘अन्नपूर्णा मंडप’ और ‘रोजघर’ जैसे क्षेत्रों में यह विशेष विधि से तैयार होता है और वहीं वितरित किया जाना धार्मिक दृष्टिकोण से अधिक उपयुक्त माना जाता है।

क्या फिर शुरू हो सकती है ऑनलाइन सुविधा?
हालांकि वर्तमान में ऑनलाइन वितरण पर रोक लगाई गई है, लेकिन मंदिर प्रशासन ने भविष्य में इस पर पुनर्विचार से इनकार नहीं किया है। यह मंदिर की पारंपरिक रीति-नीति और भक्तों की भावनाओं के बीच संतुलन साधने का विषय है।

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