इस्राइल और हमास को लड़ते हुए दो साल हो गए। इस संघर्ष ने 65 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली और लाखों को विस्थापित कर दिया। इस बार अमेरिका ने शांति का प्लान तैयार किया है और दुनिया की नजरें इजिप्ट में हो रही वार्ता पर टिकी हैं।
सबसे लंबा संघर्ष: इस्राइल-फलस्तीन विवाद एक सदी से भी अधिक समय से सुलग रहा है। 1948 में इ्स्राइल के नक्शे पर आने के बाद यह इलाका कई युद्ध और संघर्ष देख चुका है, लेकिन मौजूदा संकट जितना लंबा कोई भी नहीं चला। इन दो बरसों के दौरान कई ऐसे मोड़ आए, जब लगा कि यह संघर्ष भयानक युद्ध का रूप लेकर पूरे पश्चिम एशिया को अपनी चपेट में लेगा।
ट्रंप का प्लान: शांति की राह में सबसे बड़ी रुकावट दोनों पक्षों का एक-दूसरे पर अविश्वास है। न इस्राइल को हमास पर भरोसा है और न अरब वर्ल्ड इस्राइल पर यकीन कर पा रहा है। संघर्षविराम के पिछले सारे प्रयास इसी वजह से किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाए। हालांकि इस बार बात अलग है। यह प्लान ट्रंप सरकार ने बनाया है, जो अभी तक इस्राइल को खुली छूट दिए हुए था। सबसे बड़ी बात, इसमें फलस्तीनी अथॉरिटी के लिए जगह छोड़ी गई है।
समझदारी दिखाएं: अमेरिकी दबाव में ही सही, इस्राइल का इस बिंदु पर सहमत होना बड़ा बदलाव है। वहीं, हमास का प्लान को स्वीकार करते हुए बातचीत की मेज पर आना भी सकारात्मक कहा जा सकता है, क्योंकि अभी तक वह ऐसे प्रस्तावों को सिरे से खारिज करता रहा है। किसी भी बातचीत के सफल होने के लिए लचीलापन जरूरी है। अब उम्मीद ही की जा सकती है कि दोनों पक्ष समझदारी दिखाएंगे।
जल्दबाजी में काम न बिगड़े: यहां अहम है कि ट्रंप तुरंत कोई परिणाम चाहते हैं। उनके हिसाब से इस हफ्ते के आखिर तक पहले दौर की योजना पूरी हो जानी चाहिए। लेकिन शायद इतनी आशा पालना भी सही नहीं। इस्राइल और हमास के अलावा भी गाजा से जुड़े कई पक्ष हैं, और जब तक सभी संतुष्ट नहीं हो जाते, कोई नतीजा निकलना मुश्किल है।
गाजा की मांग: दुनिया को याद रखना चाहिए कि गाजा जियो-पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट की जगह नहीं है, जहां किसी प्लान की जोर-आजमाइश की जाए। यह 20 लाख से अधिक लोगों का घर है, जो दशकों से वैश्विक ताकतों के बीच पिसते आ रहे हैं। कहीं और रहने वालों को जो मिलता है - सम्मान, सुरक्षा और पहचान, यही इनकी भी मांग है।
सबसे लंबा संघर्ष: इस्राइल-फलस्तीन विवाद एक सदी से भी अधिक समय से सुलग रहा है। 1948 में इ्स्राइल के नक्शे पर आने के बाद यह इलाका कई युद्ध और संघर्ष देख चुका है, लेकिन मौजूदा संकट जितना लंबा कोई भी नहीं चला। इन दो बरसों के दौरान कई ऐसे मोड़ आए, जब लगा कि यह संघर्ष भयानक युद्ध का रूप लेकर पूरे पश्चिम एशिया को अपनी चपेट में लेगा।
ट्रंप का प्लान: शांति की राह में सबसे बड़ी रुकावट दोनों पक्षों का एक-दूसरे पर अविश्वास है। न इस्राइल को हमास पर भरोसा है और न अरब वर्ल्ड इस्राइल पर यकीन कर पा रहा है। संघर्षविराम के पिछले सारे प्रयास इसी वजह से किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाए। हालांकि इस बार बात अलग है। यह प्लान ट्रंप सरकार ने बनाया है, जो अभी तक इस्राइल को खुली छूट दिए हुए था। सबसे बड़ी बात, इसमें फलस्तीनी अथॉरिटी के लिए जगह छोड़ी गई है।
समझदारी दिखाएं: अमेरिकी दबाव में ही सही, इस्राइल का इस बिंदु पर सहमत होना बड़ा बदलाव है। वहीं, हमास का प्लान को स्वीकार करते हुए बातचीत की मेज पर आना भी सकारात्मक कहा जा सकता है, क्योंकि अभी तक वह ऐसे प्रस्तावों को सिरे से खारिज करता रहा है। किसी भी बातचीत के सफल होने के लिए लचीलापन जरूरी है। अब उम्मीद ही की जा सकती है कि दोनों पक्ष समझदारी दिखाएंगे।
जल्दबाजी में काम न बिगड़े: यहां अहम है कि ट्रंप तुरंत कोई परिणाम चाहते हैं। उनके हिसाब से इस हफ्ते के आखिर तक पहले दौर की योजना पूरी हो जानी चाहिए। लेकिन शायद इतनी आशा पालना भी सही नहीं। इस्राइल और हमास के अलावा भी गाजा से जुड़े कई पक्ष हैं, और जब तक सभी संतुष्ट नहीं हो जाते, कोई नतीजा निकलना मुश्किल है।
गाजा की मांग: दुनिया को याद रखना चाहिए कि गाजा जियो-पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट की जगह नहीं है, जहां किसी प्लान की जोर-आजमाइश की जाए। यह 20 लाख से अधिक लोगों का घर है, जो दशकों से वैश्विक ताकतों के बीच पिसते आ रहे हैं। कहीं और रहने वालों को जो मिलता है - सम्मान, सुरक्षा और पहचान, यही इनकी भी मांग है।
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