यूपी में इकलौती बेटी होना आम बात नहीं
मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती संतान हूं। यूपी में इकलौती बेटियों के पेरेंट्स को समाज के कितने ताने सुनने पड़ते हैं ये शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं है। मेरे पेरेंट्स ने कभी मुझे ये एहसास नहीं होने दिया कि मैं लड़की हूं। उन्होंने मुझे बहुत प्यार से बड़ा किया।
लेकिन जब कभी हम किसी रिश्तेदार के घर या शादी-ब्याह में जाते तो मां को कोई न कोई ये बात जरूर सुनाता कि तुमने दूसरा बच्चा प्लान क्यों नहीं किया। मेरे पेरेंट्स ने किसी की परवाह नहीं की। हमेशा मुझे बेटे से बढ़कर माना। लेकिन मुझे ये बातें बुरी लगती थीं। मैं सोचती थी कि मैं बेटों से भी ज्यादा कमाऊँगी। तब कोई मेरे पेरेंट्स को ऐसे ताने नहीं देगा।
मेरे घर की महिलाएं बहुत मेहनती हैं

मेरा जन्म यूपी के एक ऐसे परिवार में हुआ जहां बेटियों को पढ़ाया तो जा रहा था, लेकिन उन्हें उससे ज्यादा आजादी नहीं थी। मेरा बचपन महिलाओं से घिरा रहा। मैंने बचपन से अपनी मां और उनकी चारों बहनों को बहुत मेहनत करते देखा। थोड़े से पैसे कमाने के लिए उन्हें दिनरात खपते देखा। उन्होंने घर और करियर में बैलेंस बनाए रखने के लिए अपनी खुशियों को हमेशा पीछे रखा।
मैं भी उनकी तरह बनना चाहती थी। लेकिन मेरे सपने बड़े थे। मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे हमारे घर की आर्थिक स्थिति सुधरे और मेरे पेरेंट्स को इतना संघर्ष ना करना पड़े।
मैंने अपने लिए बड़े सपने देखे
मुझे बचपन से यही सिखाया गया कि पढ़ाई ही वो हथियार है जो तुम्हारे सपने पूरे कर सकता है। मैंने हमेशा परिवार की बात मानी। दिनरात पढ़ाई की। मैं हमेशा अपने स्कूल-कॉलेज की टॉप स्टूडेंट रही। मैंने बचपन से अपने लिए बड़े सपने देखे।
मेरे पेरेंट्स ने मुझे अपनी हैसियत से बड़े स्कूल-कॉलेज में पढ़ाया। अपनी जरूरतों से ज्यादा मेरी सुविधाओं का खयाल रखा। जिस स्कूल में मैं पढ़ती थी वहां अमीर घरों के बच्चे आते थे। उनकी लाइफस्टाइल हमसे बहुत अलग थी। लेकिन मैं पढ़ाई में उनसे अच्छी थी। उन्हें देखकर मैं सोचती थी कि जब मैं पढ़-लिखकर कुछ बन जाऊँगी तब इनकी और मेरी लाइफस्टाइल में कोई फर्क नहीं होगा।
पापा के जाने के बाद मुश्किलें बढ़ीं

मैं जब कॉलेज में पढ़ रही थी तब अचानक पापा को हार्टअटैक आया और वो हमें छोड़कर चले गए। उसके बाद जैसे हमारी जिंदगी बदल गई। हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे की जिंदगी कैसे कटेगी। मां पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई। जब मैं मां को अकेले मेहनत करते देखती तो खुद को असहाय महसूस करती। मैं जल्दी से अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी। पापा के जाने के बाद मां को कई हेल्थ प्रॉब्लम्स होने लगीं। मैंने अपनी तरफ से हमेशा मां की ढाल बने रहने की पूरी कोशिश की।
मां ने कर्ज लेकर मुझे पढ़ाया
मैं साइंस और टेक्नोलॉजी में कुछ बड़ा करना चाहती थी इसलिए मैंने बायोटेक्नोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। ये प्रोफेशनल डिग्री उस समय भारत के लिए नई थी। मैं तब ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में थी और लॉकडाउन शुरू हो गया। हमें ऑनलाइन एग्जाम देना पड़ा। हमें 'कोविड बैच' कहा गया। हमें ग्रेजुएशन के बाद कहीं कोई नौकरी नहीं मिली।
मुझे करियर में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि मां मुझे विदेश पढ़ने भेज पाती। मैं एजुकेशन लोन भी ले सकती थी। लेकिन यूपी के परिवार में बेटी को अकेले विदेश भेजना इतना आसान नहीं है। मुझे हमेशा से बेटियों के साथ होने वाला भेदभाव अखरता है।
जब कुछ समझ नहीं आया तो ग्रेजुएशन के बाद मां ने कर्ज लेकर मुझे पढ़ाया। मैंने पुणे के सिम्बायोसिस कॉलेज से फूड एंड न्यूट्रिशन में एमएससी की पढ़ाई की। लेकिन वहां भी कॉलेज में कैंपस सिलेक्शन नहीं रखा गया। हमें बस डिग्री थमा दी गई।
मैं इन डिग्रियों का क्या करूं?
मैं बचपन से पढ़ाई में अव्वल रही। अपनी पढ़ाई के लिए मैंने हमेशा मेहनत की। मेरे पेरेंट्स ने मेरी पढ़ाई के लिए अपनी खुशियों को अनदेखा किया। हम सब ये सपने देख रहे थे कि मैं पढ़-लिखकर अपना और परिवार का नाम रौशन करूंगी। मैं अपने परिवार का सापोर्ट सिस्टम बनना चाहती थी। लेकिन इतना पढ़-लिखकर जब मुझे 15 हजार की जॉब ऑफर की जाती है तो बहुत दुख होता है।
मेरी स्थिति ये है कि इस समय मैं बीएड की पढ़ाई कर रही हूं ताकि टीचर की नौकरी ही मिल जाए। मेरे साथ के जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे नहीं थे वो बारहवीं के बाद कॉल सेंटर में काम करने लगे। आज उनकी सैलरी मुझसे ज्यादा है।
मेरे मन में बार बार ये सवाल उठता है कि इतना पढ़-लिखकर भी जब सही जॉब नहीं मिलती तो ऐसी डिग्रियों का क्या फायदा? हमारे एजुकेशन सिस्टम में बच्चों के करियर की गारंटी क्यों नहीं मिलती? हम अपने सवाल लेकर किसके पास जाएं?
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