Next Story
Newszop

जब इम्यून सिस्टम बन जाए दुश्मन, ल्यूपस को पहचानें और समय रहते सही कदम उठाएं, डॉ इंद्रजीत की सलाह

Send Push

क्या आपने कभी बिना किसी कारण के लगातार थकान या जोड़ों में दर्द महसूस किया है? क्या आपकी त्वचा पर अजीब चकत्ते उभरते हैं या हल्की धूप भी असहनीय लगती है? यह सामान्य समस्या लग सकती है, लेकिन कई बार ये संकेत होते हैं एक गंभीर ऑटोइम्यून रोग के — जिसका नाम है ल्यूपस।

डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल, क्लिनिकल डायरेक्टर – रुमेटोलॉजी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम, के मुताबिक ल्यूपस, विशेष रूप से सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (SLE), एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली खुद अपने स्वस्थ अंगों और ऊतकों पर हमला करने लगती है। इससे त्वचा, किडनी, फेफड़े, जोड़ों और मस्तिष्क तक प्रभावित हो सकते हैं। चूंकि इसके लक्षण कई अन्य बीमारियों जैसे लगते हैं, इसलिए इसे पहचानने में अक्सर देर हो जाती है।

लेकिन डरने की नहीं, समझने की ज़रूरत है। अगर समय रहते इसके संकेत पहचान लिए जाएं, तो इससे जुड़ी जटिलताओं से बचा जा सकता है। कुछ लक्षणों को गंभीरता से लेना, अपनी लाइफ स्टाइल में थोड़ा बदलाव करना, इस स्थिति को नियंत्रित करने में मददगार हो सकते हैं। क्या आपके शरीर में कुछ असामान्य बदलाव दिख रहे हैं? क्या बार-बार बुखार, थकान, या जोड़ों की जकड़न अब रोज़ की बात हो गई है? यदि हां, तो शायद वक्त है इन संकेतों को नजरअंदाज न करने का।(Photo Credit):iStock


शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का उलटा असर image

ल्यूपस एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली स्वस्थ अंगों पर हमला करने लगती है। आमतौर पर यह प्रणाली संक्रमण से लड़ने का काम करती है, लेकिन ल्यूपस में यह गलती से त्वचा, जोड़ों, किडनी और मस्तिष्क जैसे अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह रोग लंबे समय तक चल सकता है और लक्षण समय-समय पर बदलते रहते हैं। ल्यूपस मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है, खासकर 15 से 45 वर्ष की आयु में। इसके कारणों में जेनेटिक प्रवृत्ति, हार्मोनल असंतुलन और पर्यावरणीय ट्रिगर्स जैसे सूरज की तेज़ रोशनी शामिल हो सकते हैं। यह रोग पूरी तरह से ठीक नहीं होता, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है यदि समय रहते पहचान और उपचार हो।


संकेत जो अनदेखे नहीं किए जा सकते image

ल्यूपस के लक्षण अक्सर दूसरी बीमारियों जैसे लगते हैं, इसलिए इनका ध्यानपूर्वक अवलोकन जरूरी है। लगातार थकान, जोड़ों में सूजन और दर्द, गालों पर तितली जैसे चकत्ते, बालों का झड़ना, धूप से एलर्जी, बार-बार बुखार आना और मुंह में छाले इसके सामान्य संकेत हैं। गंभीर मामलों में किडनी खराब होना, फेफड़ों में सूजन, सीने में दर्द, और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे दौरे या भूलने की बीमारी भी हो सकती है। इन लक्षणों का समय पर पहचानना आवश्यक है क्योंकि प्रारंभिक इलाज बीमारी को बढ़ने से रोक सकता है। यदि आपको ऐसे कई लक्षण लगातार अनुभव हो रहे हैं, तो बिना देर किए रुमेटोलॉजिस्ट से संपर्क करें।


जीवनशैली और दवाओं का संतुलन image

ल्यूपस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही दवाएं और जीवनशैली इसे नियंत्रित रखने में मदद करती हैं। शुरुआती इलाज में NSAIDs का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। अधिक गंभीर मामलों में कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं दी जाती हैं। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन त्वचा और जोड़ों के लक्षणों को कंट्रोल करने में असरदार है। जब दूसरी दवाएं असर न करें तो बायोलॉजिक उपचार जैसे बेलिमुमैब उपयोगी हो सकते हैं। इसके साथ ही नियमित व्यायाम, धूप से बचाव, संतुलित आहार और तनाव प्रबंधन भी ज़रूरी है। मरीज को खुद को समझना और ट्रिगर्स से बचना आना चाहिए ताकि फ्लेयर कम हों।


जागरूकता क्यों है जरूरी image

ल्यूपस एक ऐसी बीमारी है जो दिखती नहीं पर महसूस होती है। इसकी अदृश्य प्रकृति के कारण मरीज अक्सर समाज की अनदेखी और असंवेदनशीलता का सामना करते हैं। परिवार, दोस्तों और कार्यस्थल पर सहयोग की कमी उनका मनोबल तोड़ सकती है। यही वजह है कि जागरूकता की भूमिका बेहद अहम है। अगर लोग इस बीमारी को समझें, तो न केवल मरीज को बेहतर सहयोग मिलेगा बल्कि समय पर निदान भी संभव होगा। डॉक्टरों, हेल्थ वर्कर्स और आम जनता को इसके लक्षणों और प्रभावों की जानकारी होना ज़रूरी है। जब समाज समझेगा, तब ही मरीज खुलकर बोल सकेंगे और इलाज के लिए आगे आएंगे।


सटीक जांच से ही मिलती है स्पष्टता image

ल्यूपस का कोई एक टेस्ट नहीं होता जो इसकी पुष्टि कर सके। डॉक्टर मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, लक्षणों और कई जांचों के आधार पर इसका निर्धारण करते हैं। सबसे पहले रक्त जांच जैसे ANA (एंटी-न्यूक्लियर एंटीबॉडी) की जाती है, जो इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी दिखाती है। इसके अलावा एंटी-dsDNA, एंटी-Sm, ESR और CRP जैसी जांचें सूजन और ऑटोइम्यून सक्रियता को दर्शाती हैं। अगर किडनी या त्वचा प्रभावित हो तो बायोप्सी भी की जा सकती है। यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल हो सकती है लेकिन एक सही निदान ही सही इलाज की दिशा तय करता है। शुरुआती स्टेज में पता चल जाए तो कई अंगों को नुकसान से बचाया जा सकता है।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।

Loving Newspoint? Download the app now