ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है, सूर्य प्रकाश के स्रोत के साथ-साथ जीवन, ऊर्जा और चेतना का मूल केंद्र भी है। सूर्य की सात किरणों में ही नवग्रहों की शक्ति समाहित है। राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाता है, शेष सात ग्रह, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और स्वयं सूर्य, सात रश्मियों के माध्यम से पृथ्वी पर अपनी दिव्य ऊर्जा का संचार करते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में इसे ग्रह की संज्ञा दी गई है। जब सूर्य का प्रकाश प्रिज़्म से होकर गुजरता है, तो वह विबग्योर के सात रंगों, बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल में विभाजित हो जाता है। यही सात रंग ग्रहों की सात विभिन्न ऊर्जाएं हैं। इसी संगठित प्रकाश में से प्रत्येक ग्रह की अपनी विशिष्ट रश्मि कार्य करती है, जो मानव जीवन को प्रभावित करती है।
बृहस्पति की किरण पीली होती है, जो ज्ञान, धन और धर्म की वृद्धि करती है। जब कोई व्यक्ति पीला पुखराज धारण करता है, तो वह सूर्य की सातों किरणों में से पीली रश्मि को अवशोषित करता है, जिससे शरीर में बृहस्पति की शक्ति का संचार होता है। इसी प्रकार, चंद्रमा की रश्मि श्वेत होती है, जो शांति, भावनात्मक संतुलन और मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। बुध की रश्मि हल्की हरी होती है, जो बुद्धि, वाणी और निर्णय क्षमता को सशक्त बनाती है। मंगल की लाल रश्मि साहस और ऊर्जा की वृद्धि करती है, जबकि शुक्र की चांदी जैसी उज्ज्वल रश्मि प्रेम, कला और आकर्षण को बढ़ाती है। शनि की गहरी नीली किरण धैर्य, कर्म और अनुशासन की शक्ति का संचार करती है।
रत्न धारण करने का रहस्य भी इन्हीं ग्रह-रश्मियों पर आधारित है। प्रत्येक रत्न सूर्य की सातों रश्मियों में से अपने ग्रह की विशिष्ट किरण को ग्रहण करता है और उसे धारक के शरीर में प्रवाहित करता है, इसीलिए कहा गया है कि “रत्न नहीं, रश्मि काम करती है।” जब व्यक्ति अपनी जन्मकुंडली के अनुसार उचित रत्न धारण करता है, तो वह अपने जीवन में ग्रहों की असंतुलित ऊर्जा को संतुलित कर लेता है। सूर्याेपासना, सूर्य को अर्घ्य देना और प्रातःकालीन सूर्य ध्यान का महत्व भी इसी विज्ञान से जुड़ा है। जब व्यक्ति सूर्य को जल अर्पित करता है, तो उसकी किरणें जल से परावर्तित होकर शरीर और मन पर सीधा प्रभाव डालती हैं।
बृहस्पति की किरण पीली होती है, जो ज्ञान, धन और धर्म की वृद्धि करती है। जब कोई व्यक्ति पीला पुखराज धारण करता है, तो वह सूर्य की सातों किरणों में से पीली रश्मि को अवशोषित करता है, जिससे शरीर में बृहस्पति की शक्ति का संचार होता है। इसी प्रकार, चंद्रमा की रश्मि श्वेत होती है, जो शांति, भावनात्मक संतुलन और मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। बुध की रश्मि हल्की हरी होती है, जो बुद्धि, वाणी और निर्णय क्षमता को सशक्त बनाती है। मंगल की लाल रश्मि साहस और ऊर्जा की वृद्धि करती है, जबकि शुक्र की चांदी जैसी उज्ज्वल रश्मि प्रेम, कला और आकर्षण को बढ़ाती है। शनि की गहरी नीली किरण धैर्य, कर्म और अनुशासन की शक्ति का संचार करती है।
रत्न धारण करने का रहस्य भी इन्हीं ग्रह-रश्मियों पर आधारित है। प्रत्येक रत्न सूर्य की सातों रश्मियों में से अपने ग्रह की विशिष्ट किरण को ग्रहण करता है और उसे धारक के शरीर में प्रवाहित करता है, इसीलिए कहा गया है कि “रत्न नहीं, रश्मि काम करती है।” जब व्यक्ति अपनी जन्मकुंडली के अनुसार उचित रत्न धारण करता है, तो वह अपने जीवन में ग्रहों की असंतुलित ऊर्जा को संतुलित कर लेता है। सूर्याेपासना, सूर्य को अर्घ्य देना और प्रातःकालीन सूर्य ध्यान का महत्व भी इसी विज्ञान से जुड़ा है। जब व्यक्ति सूर्य को जल अर्पित करता है, तो उसकी किरणें जल से परावर्तित होकर शरीर और मन पर सीधा प्रभाव डालती हैं।
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