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सांसदी के बाद पार्टी की कमान भी गई... चुनाव में भद्द पिटने के बाद खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह को एक और झटका

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ओटावा: कनाडा आम चुनाव में हार के बाद खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह के हाथ से न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का नेतृत्व भी चला गया है। पार्टी नेता के रूप में जगमीत सिंह का कार्यकाल सोमवार शाम को खत्म हो गया। इसके बाद पार्टी ने सांसद डॉन डेविस को अपना अंतरिम नेता चुना है। NDP की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद सोमवार को ये ऐलान किया गया। खालिस्तानियों के पक्ष और भारत विरोध के लिए पहचान रखने वाले जगमीत सिंह करीब आठ साल से पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन बीते महीने हुए चुनाव में वह अपनी सीट बचाने में भी नाकामयाब रहे थे। जगमीत सिंह अक्टूबर 2017 में NDP के नेता बने थे। यह एक बड़ी कामयाबी थी क्योंकि वह कनाडा में किसी संघीय पार्टी का नेतृत्व करने वाले पहले अश्वेत व्यक्ति थे। उनके नेतृत्व में पार्टी को 28 अप्रैल के संघीय चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी केवल सात सीटें और छह फीसदी वोट शेयर ही हासिल कर पाई, जबकि 2021 के चुनाव में पार्टी को 25 सीटें और 18% से ज्यादा वोट मिले थे। कनाडा के हालिया चुनाव में जगमीत सिंह को व्यक्तिगत रूप से भी झटका लगा क्योंकि वह ब्रिटिश कोलंबिया में बर्नबी सेंट्रल की सीट पर मुख्य मुकाबले से बाहर जाते हुए तीसरे स्थान पर खिसक गए। 'चुनाव नतीजों ने हमें झटका दिया'जगमीत सिंह ने 28 अप्रैल को चुनाव नतीजों के बाद रात को ही इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। इसके बाद वह पद से हट गए। NDP की नेता मैरी शॉर्टल ने सोमवार को कहा कि हाल के चुनाव परिणाम हमारी उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे हैं लेकिन बेहतर कनाडा बनाने की हमारी प्रतिबद्धता कायम है। पार्टी अब नेतृत्व के लिए दौड़ की तैयारी शुरू करेगी।NDP की हार का एक कारण उनका लंबे समय तक जस्टिन ट्रूडो की सरकार में रहना भी माना जा रहा है। ट्रूडो ने जनवरी में पद छोड़ दिया था। ऐसे में पार्टी को नए चेहरे के साथ चुनाव लड़ने से राहत मिली। दूसरी ओर सिंह को एंटी इंकबेंसी का सामना करना पड़ा। वह अपनी सीटच भी नहीं बचा पाए, जिसे उन्होंने 2019 और 2021 में जीता था।NDP के नेता बनने के बाद जगमीत सिंह को खालिस्तानी उग्रवाद के प्रति अपने रुख के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। साल 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें भारत का वीजा देने से इनकार कर दिया था। हालांकि इसके बाद भी जगमीत सिंह का भारत विरोधी रुख लगातार कायम रहा।
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