नई दिल्ली: भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट ने कमाल कर दिया है। इसमें खासतौर से स्मार्टफोन निर्यात शामिल है। पिछले एक दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखी गई है। इससे यह देश की तीसरी सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती एक्सपोर्ट कैटेगरी बन गई है। 2014-15 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 1,500 करोड़ रुपये से उछलकर 2024-25 में 2 लाख करोड़ रुपये के पार निकल गया है। यह 127 गुना की बढ़ोतरी को दर्शाता है। इस ग्रोथ के पीछे मुख्य रूप से स्मार्टफोन मैन्युफैक्चिरिंग का बड़ा हाथ है। सरकार का टारगेट इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात आइटम बनाना है। ये आंकड़े इसलिए भी अहम हैं क्योंकि चीन की इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट में बादशाहत रही है। भारत अब तेजी से उस बादशाहद को चुनौती देने के लिए खड़ा होने लगा है।
2024-25 के पहले पांच महीनों में ही स्मार्टफोन निर्यात में साल-दर-साल 55% की बढ़ोतरी देखी गई। इसका एक्सपोर्ट 1 लाख करोड़ रुपये के मूल्य तक पहुंच गया। 2024 में 1,10,989 करोड़ रुपये मूल्य के आईफोन का निर्यात किया गया था। इस सेक्टर ने पिछले दशक में लगभग 25 लाख रोजगार भी पैदा किए हैं।
आंकड़े बता रहे हैं कितना बड़ा आया है चेंज
सरकार ने बताया, 'भारत अब मोबाइल उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। एक दशक पहले अपनी ज्यादातर आवश्यकताओं का आयात करने से लेकर घरेलू स्तर पर लगभग सभी उपकरणों का निर्माण करने तक, वह अपने बूते खड़ा है।'
इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन 2014-15 में 1.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 11.3 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो छह गुना बढ़ोतरी है। इसी अवधि में निर्यात 38,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 3.27 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो आठ गुना उछाल दर्शाता है। यह ग्रोथ आज देश भर में 300 से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग यूनिटों की बदौलत है। 2014 में इनकी संख्या केवल दो थी। सरकार के अनुसार, इस बढ़ोतरी ने भारत को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्माता बना दिया है।
सरकार ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम के तहत स्वीकृत परियोजनाएं बदलाव को जारी रखेंगी। योजना के तहत स्वीकृत परियोजनाओं का पहला बैच तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में 5,532 करोड़ रुपये का निवेश करेगा।
पेट्रोलियम निर्यात को छोड़ सकता है पीछे
दशकों से भारत के निर्यात इंजन को तेल और पेट्रोलियम उत्पादों ने चलाया है। अब इलेक्ट्रॉनिक्स तेजी से आगे बढ़ रहा है। जल्द ही यह दूसरी सबसे बड़ी एक्सपोर्ट कैटेगरी के रूप में अपना स्थान ले सकता है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 42% बढ़कर लगभग 22.2 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल 15.6 अरब डॉलर था। यह टॉप 30 एक्सपोर्ट कैटेगरी में सबसे तेजी से बढ़ रहा है।
इसके उलट पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात 16.4% घटकर 30.6 अरब डॉलर रह गया, जो पिछले साल 36.6 अरब डॉलर था। इंजीनियरिंग उत्पाद इसी अवधि में 59.3 अरब डॉलर (5.3% की वृद्धि) के साथ समग्र निर्यात में सबसे आगे रहे।
इलेक्ट्रॉनिक्स और पेट्रोलियम के बीच का अंतर कम हो रहा है। अगर यह रफ्तार बनी रहती है तो इलेक्ट्रॉनिक्स कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग के बाद दूसरे स्थान पर आ सकता है। इसका वास्तविक मतलब यह है कि भारत के निर्यात डीएनए में बदलाव आ रहा है।
रातोंरात नहीं आया है बदलाव
यह बदलाव रातोंरात नहीं हुआ। इसकी शुरुआत 2020 में हुई जब सरकार ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम शुरू की। समय एकदम सही था। कोरोना ने चीन की फैक्ट्रियों पर दुनिया की अत्यधिक निर्भरता को उजागर कर दिया था। वैश्विक निर्माता विकल्प तलाश रहे थे। भारत ने अपना अवसर देखा और तेजी से आगे बढ़ा।
पीएलआई स्कीम ने 2019-20 के स्तरों के मुकाबले स्थानीय स्तर पर निर्मित फोन और कंपोनेंट की वृद्धिशील बिक्री पर 4-6% प्रोत्साहन की पेशकश की। अगस्त में 40,951 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू की गई मोबाइल हैंडसेट योजना, उन कंपनियों को पुरस्कृत करने के लिए बनाई गई थी जिन्होंने भारत में उत्पादन बढ़ाया था।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स बूम का सबसे बड़ा ड्राइवर ऐपल का उत्पादन बदलाव रहा है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में ही भारत से 10 अरब डॉलर मूल्य के आईफोन भेजे गए। यह देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का लगभग 45% और स्मार्टफोन निर्यात का तीन-चौथाई से ज्यादा है।
ऐपल ने भारत को चीन के बाद अपना दूसरा सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग बेस बना दिया है। वैश्विक बिक्री में मेड-इन-इंडिया आईफोन की हिस्सेदारी 20% से ज्यादा हो गई है, जो फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन (अब टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के स्वामित्व में) जैसे स्थानीय भागीदारों के माध्यम से ऐपल के तेजी से विस्तार को दर्शाता है।
2024-25 के पहले पांच महीनों में ही स्मार्टफोन निर्यात में साल-दर-साल 55% की बढ़ोतरी देखी गई। इसका एक्सपोर्ट 1 लाख करोड़ रुपये के मूल्य तक पहुंच गया। 2024 में 1,10,989 करोड़ रुपये मूल्य के आईफोन का निर्यात किया गया था। इस सेक्टर ने पिछले दशक में लगभग 25 लाख रोजगार भी पैदा किए हैं।
आंकड़े बता रहे हैं कितना बड़ा आया है चेंज
सरकार ने बताया, 'भारत अब मोबाइल उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। एक दशक पहले अपनी ज्यादातर आवश्यकताओं का आयात करने से लेकर घरेलू स्तर पर लगभग सभी उपकरणों का निर्माण करने तक, वह अपने बूते खड़ा है।'
इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन 2014-15 में 1.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 11.3 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो छह गुना बढ़ोतरी है। इसी अवधि में निर्यात 38,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 3.27 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो आठ गुना उछाल दर्शाता है। यह ग्रोथ आज देश भर में 300 से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग यूनिटों की बदौलत है। 2014 में इनकी संख्या केवल दो थी। सरकार के अनुसार, इस बढ़ोतरी ने भारत को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्माता बना दिया है।
सरकार ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम के तहत स्वीकृत परियोजनाएं बदलाव को जारी रखेंगी। योजना के तहत स्वीकृत परियोजनाओं का पहला बैच तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में 5,532 करोड़ रुपये का निवेश करेगा।
पेट्रोलियम निर्यात को छोड़ सकता है पीछे
दशकों से भारत के निर्यात इंजन को तेल और पेट्रोलियम उत्पादों ने चलाया है। अब इलेक्ट्रॉनिक्स तेजी से आगे बढ़ रहा है। जल्द ही यह दूसरी सबसे बड़ी एक्सपोर्ट कैटेगरी के रूप में अपना स्थान ले सकता है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 42% बढ़कर लगभग 22.2 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल 15.6 अरब डॉलर था। यह टॉप 30 एक्सपोर्ट कैटेगरी में सबसे तेजी से बढ़ रहा है।
इसके उलट पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात 16.4% घटकर 30.6 अरब डॉलर रह गया, जो पिछले साल 36.6 अरब डॉलर था। इंजीनियरिंग उत्पाद इसी अवधि में 59.3 अरब डॉलर (5.3% की वृद्धि) के साथ समग्र निर्यात में सबसे आगे रहे।
इलेक्ट्रॉनिक्स और पेट्रोलियम के बीच का अंतर कम हो रहा है। अगर यह रफ्तार बनी रहती है तो इलेक्ट्रॉनिक्स कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग के बाद दूसरे स्थान पर आ सकता है। इसका वास्तविक मतलब यह है कि भारत के निर्यात डीएनए में बदलाव आ रहा है।
रातोंरात नहीं आया है बदलाव
यह बदलाव रातोंरात नहीं हुआ। इसकी शुरुआत 2020 में हुई जब सरकार ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम शुरू की। समय एकदम सही था। कोरोना ने चीन की फैक्ट्रियों पर दुनिया की अत्यधिक निर्भरता को उजागर कर दिया था। वैश्विक निर्माता विकल्प तलाश रहे थे। भारत ने अपना अवसर देखा और तेजी से आगे बढ़ा।
पीएलआई स्कीम ने 2019-20 के स्तरों के मुकाबले स्थानीय स्तर पर निर्मित फोन और कंपोनेंट की वृद्धिशील बिक्री पर 4-6% प्रोत्साहन की पेशकश की। अगस्त में 40,951 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू की गई मोबाइल हैंडसेट योजना, उन कंपनियों को पुरस्कृत करने के लिए बनाई गई थी जिन्होंने भारत में उत्पादन बढ़ाया था।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स बूम का सबसे बड़ा ड्राइवर ऐपल का उत्पादन बदलाव रहा है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में ही भारत से 10 अरब डॉलर मूल्य के आईफोन भेजे गए। यह देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का लगभग 45% और स्मार्टफोन निर्यात का तीन-चौथाई से ज्यादा है।
ऐपल ने भारत को चीन के बाद अपना दूसरा सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग बेस बना दिया है। वैश्विक बिक्री में मेड-इन-इंडिया आईफोन की हिस्सेदारी 20% से ज्यादा हो गई है, जो फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन (अब टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के स्वामित्व में) जैसे स्थानीय भागीदारों के माध्यम से ऐपल के तेजी से विस्तार को दर्शाता है।
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