पटना: बीजेपी के फायर ब्रांड लीडर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अक्सर हिंदुत्व को उभारने वाले ऐसे वक्तव्य दे देतें है जो राजनीति में सेक्युलरिज्म की राह पर चलने वाले की राह में रोड़ा बोने का काम करता है। अक्सर बीजेपी के हार्ड कोर बयान से जहां राजद को फायदा हो जाता है तो वहीं सेक्युलर नेता राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नुकसान हो जाता है। इसे समझना हो तो जेडीयू के मुस्लिम विधायकों की लगातार घटती संख्या से समझा जा सकता है। आइए एक आकलन करते हैं वर्ष 2005 से वर्ष 2020 तक के विधासनसभा चुनाव में जेडीयू के घटते मुस्लिम विधायकों के बारे में।
गिरिराज सिंह का बयान
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बोल एक बार फिर सेक्युलरिज्म राजनीति करने वालों के लिए बिगड़ गए। बेगूसराय में एक सार्वजनिक मंच से उन्होंने कहा कि अगली बार बीजेपी की सरकार बनने पर बिहार से एक-एक बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए को बाहर निकाल दिया जाएगा। विपक्षी दलों पर भी तीखा हमला बोलते कहा कि “कांग्रेस और आरजेडी के लोग SIR (सीआईआर/एनआरसी) का विरोध कर रहे हैं। वे ऐसा करके महज वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। लेकिन हम डंके की चोट पर कहते हैं कि देश और बिहार में घुसपैठियों के लिए कोई जगह नहीं होगी। फिर मुस्लिमों से एक अपील भी करते हैं कि आप मस्जिद जाइए, नमाज पढ़िए। हमें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन अगर मस्जिदों से यह राजनीति होगी कि किसे वोट देना है और किसे नहीं, इसके लिए फतवे जारी होंगे, तो मंदिरों से भी घड़ी-घंट की आवाज़ गूंजेगी।
जेडीयू को नुकसान
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का यह कोई पहला बयान नहीं जो नीतीश कुमार की राजनीति को प्रभावित कर जाए। जिसे यहां के कानून पसंद नहीं वो पाकिस्तान चले जाएं। या फिर लालू यादव नमाज पढ़े न? इस तरह के बयान से सीएम नीतीश कुमार की राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ा है। खास कर मुस्लिम मतों को लेकर। पिछले चार विधानसभा चुनाव का एक आकलन देखे...वर्ष 2005 विधानसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू की टिकट पर लड़ने वाले मुस्लिम प्रत्याशियों को भी पसंद किया जा रहा था। तब मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत का औसत भी बेहतर भी था। कई विधायक बने। पुपरी से शाहिद अली खान, मुंगेर से मोनाजिर हसन, जोकीहाट से मंजर आलम, बलिया से जमशेद अशरफ को जीत मिली थी। यह दीगर कि बेलागंज, जहानाबाद और केसरिया विधानसभा से जदयू की प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।
2010 विधानसभा चुनाव
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो जदयू के प्रत्याशी साहेबपुर कमाल, डुमरांव, कल्याणपुर, गौडा बौराम, जोकीहाट और शिवहर विधासनसभा से मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत हुई। डुमरांव से दाउद अली, गौडा बौराम से इजहार अहमद, साहेबपुर कमाल से परवीन अमानुल्लाह, जोकीहाट से सरफराज अहमद, शिवहर से शर्फुद्दीन तथा कल्याणपुर से रजिया खातून को जीत मिली थी। 2015 विधानसभा चुनाव में जदयू के पांच अल्पसंख्यक प्रत्याशी जीते थे। वर्ष 2015 में जदयू ने राजद के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में जदयू के पांच अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव जीते थे। इनमें सिकटा से खुर्शीद उर्फ फिरोज, शिवहर से शर्फुद्दीन, ठाकुरगंज से नौशाद आलम, कोचाधामन से मुजाहिद आलम तथा जोकीहाट से सरफराज आलम को जीत मिली थी। कल्याणपुर से जदयू प्रत्याशी रजिया खातून दूसरे नंबर पर थीं।
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2020 का विधानसभा चुनाव
वर्ष 2020 विधानसभा के चुनाव में जेडीयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। लेकिन जदयू के खाते में भी एक मुस्लिम विधायक नहीं थे। बाद में बहुजन समाज पार्टी के टिकट से जीते जमा खान ने जदयू की सदस्यता ली और मंत्री भी बने। दरअसल जेडीयू की राजनीति के सिरमोर नीतीश कुमार के राजनीति के तीन चरित्र थे। क्राइम ,करप्शन और कम्युनिज्म से कोई समझौता नहीं। पर बीजेपी के साथ रह कर राजनीत करने के कारण नीतीश कुमार के सेक्युलरिज्म पर सवाल उठते रहे। तमाम हार्डकोर हिंदू नेता के उद्घोषणा के साथ सेक्युलरिज्म की तस्वीर बिखरने लगी। और 2020 आते आते नीतीश कुमार का सेक्युलरिज्म का तिलिस्म टूट गया। यही वजह भी है कि वर्ष 2020 के विधासनसभा और 2024 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट जदयू को नहीं मिली। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नीतीश कुमार ने इंटरनल सर्वे कराया। इस सर्वे में मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मंतव्य आया कि जब तक भाजपा के साथ रहेंगे तब तक ऐसे ही परिणाम मिलेंगे।
गिरिराज सिंह का बयान
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बोल एक बार फिर सेक्युलरिज्म राजनीति करने वालों के लिए बिगड़ गए। बेगूसराय में एक सार्वजनिक मंच से उन्होंने कहा कि अगली बार बीजेपी की सरकार बनने पर बिहार से एक-एक बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए को बाहर निकाल दिया जाएगा। विपक्षी दलों पर भी तीखा हमला बोलते कहा कि “कांग्रेस और आरजेडी के लोग SIR (सीआईआर/एनआरसी) का विरोध कर रहे हैं। वे ऐसा करके महज वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। लेकिन हम डंके की चोट पर कहते हैं कि देश और बिहार में घुसपैठियों के लिए कोई जगह नहीं होगी। फिर मुस्लिमों से एक अपील भी करते हैं कि आप मस्जिद जाइए, नमाज पढ़िए। हमें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन अगर मस्जिदों से यह राजनीति होगी कि किसे वोट देना है और किसे नहीं, इसके लिए फतवे जारी होंगे, तो मंदिरों से भी घड़ी-घंट की आवाज़ गूंजेगी।
जेडीयू को नुकसान
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का यह कोई पहला बयान नहीं जो नीतीश कुमार की राजनीति को प्रभावित कर जाए। जिसे यहां के कानून पसंद नहीं वो पाकिस्तान चले जाएं। या फिर लालू यादव नमाज पढ़े न? इस तरह के बयान से सीएम नीतीश कुमार की राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ा है। खास कर मुस्लिम मतों को लेकर। पिछले चार विधानसभा चुनाव का एक आकलन देखे...वर्ष 2005 विधानसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू की टिकट पर लड़ने वाले मुस्लिम प्रत्याशियों को भी पसंद किया जा रहा था। तब मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत का औसत भी बेहतर भी था। कई विधायक बने। पुपरी से शाहिद अली खान, मुंगेर से मोनाजिर हसन, जोकीहाट से मंजर आलम, बलिया से जमशेद अशरफ को जीत मिली थी। यह दीगर कि बेलागंज, जहानाबाद और केसरिया विधानसभा से जदयू की प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।
2010 विधानसभा चुनाव
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो जदयू के प्रत्याशी साहेबपुर कमाल, डुमरांव, कल्याणपुर, गौडा बौराम, जोकीहाट और शिवहर विधासनसभा से मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत हुई। डुमरांव से दाउद अली, गौडा बौराम से इजहार अहमद, साहेबपुर कमाल से परवीन अमानुल्लाह, जोकीहाट से सरफराज अहमद, शिवहर से शर्फुद्दीन तथा कल्याणपुर से रजिया खातून को जीत मिली थी। 2015 विधानसभा चुनाव में जदयू के पांच अल्पसंख्यक प्रत्याशी जीते थे। वर्ष 2015 में जदयू ने राजद के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में जदयू के पांच अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव जीते थे। इनमें सिकटा से खुर्शीद उर्फ फिरोज, शिवहर से शर्फुद्दीन, ठाकुरगंज से नौशाद आलम, कोचाधामन से मुजाहिद आलम तथा जोकीहाट से सरफराज आलम को जीत मिली थी। कल्याणपुर से जदयू प्रत्याशी रजिया खातून दूसरे नंबर पर थीं।
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2020 का विधानसभा चुनाव
वर्ष 2020 विधानसभा के चुनाव में जेडीयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। लेकिन जदयू के खाते में भी एक मुस्लिम विधायक नहीं थे। बाद में बहुजन समाज पार्टी के टिकट से जीते जमा खान ने जदयू की सदस्यता ली और मंत्री भी बने। दरअसल जेडीयू की राजनीति के सिरमोर नीतीश कुमार के राजनीति के तीन चरित्र थे। क्राइम ,करप्शन और कम्युनिज्म से कोई समझौता नहीं। पर बीजेपी के साथ रह कर राजनीत करने के कारण नीतीश कुमार के सेक्युलरिज्म पर सवाल उठते रहे। तमाम हार्डकोर हिंदू नेता के उद्घोषणा के साथ सेक्युलरिज्म की तस्वीर बिखरने लगी। और 2020 आते आते नीतीश कुमार का सेक्युलरिज्म का तिलिस्म टूट गया। यही वजह भी है कि वर्ष 2020 के विधासनसभा और 2024 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट जदयू को नहीं मिली। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नीतीश कुमार ने इंटरनल सर्वे कराया। इस सर्वे में मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मंतव्य आया कि जब तक भाजपा के साथ रहेंगे तब तक ऐसे ही परिणाम मिलेंगे।
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