पटना: दलित चिंतन के साथ लौटी राष्ट्रीय कांग्रेस ने अब अपना आधार बढ़ाने की दिशा में दबंग दलित नेताओं का जुटान करना शुरू कर दिया है। इस नई रणनीति के साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद मल्लिकार्जुन खड़गे को सौंपते बिहार में भी बदलाव की नींव रख दी गई है। इस लिहाजा बिहार प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष का पद दलित नेता को सौंप कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में 19 प्रतिशत का खेल खेला है। हालांकि इस खेल में कुछ आमदनी हुई तो कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा। समझिए कांग्रेस की इस रणनीति का गुणा-भाग...
बिहार कांग्रेस और दलित
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए दलित और सवर्ण कार्ड की और लौटी कांग्रेस ने धीरे-धीरे ही सही, पर सटीक मोहरे बिठाने शुरू कर दिए हैं। बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो परिवर्तन रथ पर सवार कांग्रेस ने दलित राजनीति की शुरुआत कृष्णा अल्लावरु को बिहार प्रभारी बना कर किया। लगे हाथ कांग्रेस आलाकमान ने दलित राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। राजेश कुमार कांग्रेस के 42वें और दलित से चौथे प्रदेश अध्यक्ष हैं। इससे पहले 1977 में मुंगेरी लाल, 1985 में डूमर लाल बैठा और 2013 में अशोक चौधरी दलित अध्यक्ष बने थे।
कौन हैं राजेश राम?
राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना कर कांग्रेस ने दलितों को अपनी और आकर्षित करने का प्लान बनाया। वजह यह थी कि बिहार में तीन प्रमुख राजनीतिक दलों यानी बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी के रणनीतिकारों ने पार्टी का अध्यक्ष दलित जाति के नेताओं को नहीं बनाया। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो राजेश कुमार रविदास जाति से आते हैं। वर्तमान सर्वे के अनुसार इनके समाज का वोट प्रतिशत 5.25 फीसदी है।
राजेश राम के पिता पूर्व मंत्री
राजेश राम पहली बार साल 2015 में कुटुंबा विधानसभा से विधायक रहे। 2020 में दूसरी बार भी कुटुंबा विधानसभा से ही विधायक रहे। इनकी पकड़ औरंगाबाद ,सासाराम इलाके में काफी है। इनकी राजनीति का आधार बनाने में इनके पिता दिलकेश्वर राम का बड़ा सहयोग रहा है। दिलकेश्वर राम खुद भी कई बार विधायक रहे हैं। ये पशुपालन और स्वास्थ्य मंत्री भी रहे थे। एक लंबे अन्तराल से इस परिवार का प्रभाव खास कर दलित समुदाय पर विशेष रूप से है।
पूर्व मंत्री और दबंग छेदी राम कांग्रेस में शामिल
राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में मंत्री रहे छेदी राम कांग्रेस की सदस्यता लेकर बक्सर और उसने आसपास जिला के तमाम सीटों पर एडीए को कठिन चुनौती देने जा रहे हैं। छेदी राम साल 2000 में राजपुर विधानसभा से बसपा के टिकट से चुनाव जीते और विधायक बने। बाद में ये राजद जॉइन कर मंत्री भी बने। छेदी राम दलित नेता होते हुए भी काफी दबंग नेता माने जाते हैं। इन पर साल 2024 में जमीन कब्जा करने का आरोप भी लगा था। चर्चा यह थी कि एक जमीन पर कब्जे के लिए आरजेडी के पूर्व मंत्री अपने गुर्गों के साथ बसंतपुर पहुंचे थे। जहां से पुलिस ने कुल पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया था। घटना बक्सर जिले के राजपुर थाना इलाके की थी। तब गिरफ्तार पूर्व मंत्री के पास से दो राइफल और 57 जिंदा कारतूस भी बरामद किए गए थे।
और भी हैं कई कद्दावर दलित नेता
कांग्रेस के दलित नेताओं की कतार और भी लंबी है। संजीव टोनी, प्रतिमा दास, विश्वनाथ राम, नागेंद्र पासवान, शंकर स्वरूप पासवान जैसे कांग्रेस के पास और भी दलित नेता हैं। इनका अपने जिला क्षेत्र विशेष में प्रभाव है। संजीव टोनी का मगध क्षेत्र, खासकर पटना और आसपास। विधायक प्रतिमा दास का उत्तरी बिहार खासकर हाजीपुर और वैशाली। प्रतिमा दास ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए राजापाकड़ विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। इन्होंने 54,299 वोट हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, जनता दल (यूनाइटेड) के महेंद्र राम को 1,796 मतों के अंतर से हराया था। नागेंद्र पासवान का विशेष प्रभाव रोसड़ा और समस्तीपुर जिले के विधानसभा पर है। वहीं शंकर स्वरूप का प्रभाव गया क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों पर है।
बिहार कांग्रेस और दलित
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए दलित और सवर्ण कार्ड की और लौटी कांग्रेस ने धीरे-धीरे ही सही, पर सटीक मोहरे बिठाने शुरू कर दिए हैं। बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो परिवर्तन रथ पर सवार कांग्रेस ने दलित राजनीति की शुरुआत कृष्णा अल्लावरु को बिहार प्रभारी बना कर किया। लगे हाथ कांग्रेस आलाकमान ने दलित राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। राजेश कुमार कांग्रेस के 42वें और दलित से चौथे प्रदेश अध्यक्ष हैं। इससे पहले 1977 में मुंगेरी लाल, 1985 में डूमर लाल बैठा और 2013 में अशोक चौधरी दलित अध्यक्ष बने थे।
कौन हैं राजेश राम?
राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना कर कांग्रेस ने दलितों को अपनी और आकर्षित करने का प्लान बनाया। वजह यह थी कि बिहार में तीन प्रमुख राजनीतिक दलों यानी बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी के रणनीतिकारों ने पार्टी का अध्यक्ष दलित जाति के नेताओं को नहीं बनाया। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो राजेश कुमार रविदास जाति से आते हैं। वर्तमान सर्वे के अनुसार इनके समाज का वोट प्रतिशत 5.25 फीसदी है।
राजेश राम के पिता पूर्व मंत्री
राजेश राम पहली बार साल 2015 में कुटुंबा विधानसभा से विधायक रहे। 2020 में दूसरी बार भी कुटुंबा विधानसभा से ही विधायक रहे। इनकी पकड़ औरंगाबाद ,सासाराम इलाके में काफी है। इनकी राजनीति का आधार बनाने में इनके पिता दिलकेश्वर राम का बड़ा सहयोग रहा है। दिलकेश्वर राम खुद भी कई बार विधायक रहे हैं। ये पशुपालन और स्वास्थ्य मंत्री भी रहे थे। एक लंबे अन्तराल से इस परिवार का प्रभाव खास कर दलित समुदाय पर विशेष रूप से है।
पूर्व मंत्री और दबंग छेदी राम कांग्रेस में शामिल
राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में मंत्री रहे छेदी राम कांग्रेस की सदस्यता लेकर बक्सर और उसने आसपास जिला के तमाम सीटों पर एडीए को कठिन चुनौती देने जा रहे हैं। छेदी राम साल 2000 में राजपुर विधानसभा से बसपा के टिकट से चुनाव जीते और विधायक बने। बाद में ये राजद जॉइन कर मंत्री भी बने। छेदी राम दलित नेता होते हुए भी काफी दबंग नेता माने जाते हैं। इन पर साल 2024 में जमीन कब्जा करने का आरोप भी लगा था। चर्चा यह थी कि एक जमीन पर कब्जे के लिए आरजेडी के पूर्व मंत्री अपने गुर्गों के साथ बसंतपुर पहुंचे थे। जहां से पुलिस ने कुल पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया था। घटना बक्सर जिले के राजपुर थाना इलाके की थी। तब गिरफ्तार पूर्व मंत्री के पास से दो राइफल और 57 जिंदा कारतूस भी बरामद किए गए थे।
और भी हैं कई कद्दावर दलित नेता
कांग्रेस के दलित नेताओं की कतार और भी लंबी है। संजीव टोनी, प्रतिमा दास, विश्वनाथ राम, नागेंद्र पासवान, शंकर स्वरूप पासवान जैसे कांग्रेस के पास और भी दलित नेता हैं। इनका अपने जिला क्षेत्र विशेष में प्रभाव है। संजीव टोनी का मगध क्षेत्र, खासकर पटना और आसपास। विधायक प्रतिमा दास का उत्तरी बिहार खासकर हाजीपुर और वैशाली। प्रतिमा दास ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए राजापाकड़ विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। इन्होंने 54,299 वोट हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, जनता दल (यूनाइटेड) के महेंद्र राम को 1,796 मतों के अंतर से हराया था। नागेंद्र पासवान का विशेष प्रभाव रोसड़ा और समस्तीपुर जिले के विधानसभा पर है। वहीं शंकर स्वरूप का प्रभाव गया क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों पर है।
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