बेंगलुरु : मद्रास हाईकोर्ट ने पोरूर की एक चर्च को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने चर्च को अपने निजी जमीन पर बने कब्रिस्तान को तुरंत बंद करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि दफन किए गए सभी शवों को 12 हफ्तों के अंदर निकालकर निर्धारित कब्रिस्तान में दोबारा दफनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट का यह फैसला एक रियल एस्टेट कंपनी की याचिका पर आया है, जिसने चर्च के इस काम पर आपत्ति जताई थी।
चर्च की जमीन अपार्टमेंट प्रोजेक्ट के बगल में है
तिरुपुर की रियल एस्टेट कंपनी स्टेलर डेवेलपर ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा था कि चर्च अपनी निजी जमीन को कब्रिस्तान के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। यह जमीन कंपनी के अपार्टमेंट प्रोजेक्ट के बगल मदनानंथपुरम अलंदुर में है। कंपनी ने यह भी आरोप लगाया कि ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (जीसीसी) ने चर्च को अवैध रूप से कब्रिस्तान का लाइसेंस दिया है। यह लाइसेंस 27 फरवरी 2024 को दिया गया था जो कि जोनिंग कानूनों और नियमों के खिलाफ था। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि लाइसेंस जारी करने में जल्दबाजी की गई और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि यह लाइसेंस तमिलनाडु अर्बन लोकल बॉडीज एक्ट, 1998 के तहत तय नियमों के विरुद्ध था।
शवों को दूसरी जगह दफनाना होगा
कोर्ट ने पाया कि लाइसेंस के लिए तय फीस नहीं ली गई और न ही राज्य सरकार से जरूरी मंजूरी ली गई थी। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिस कमिश्नर ने यह लाइसेंस जारी किया, वह नियमों को बनाने वाली उस कमेटी का हिस्सा थे। कोर्ट ने कहा कि उन्हें सरकारी मंजूरी का इंतजार करना चाहिए था। कोर्ट ने साफ कहा कि चर्च को 12 हफ्तों के अंदर शवों को निकालकर दूसरी जगह दफनाना होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर चर्च ऐसा नहीं करता है तो नगर निगम और पुलिस इस काम को चर्च के खर्चे पर करवाएगी।
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