आनंद त्रिपाठी, लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों के संगठन विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और पावर कॉरपोरेशन चेयरमैन के बीच सोमवार को वार्ता हुई। वार्ता में संघर्ष समिति ने महंगी बिजली खरीद और सरकारी विभागों से राजस्व न मिलने को घाटे की मुख्य वजह बताया। वहीं, कॉरपोरेशन ने इसके लिए बिजली कर्मचारियों को जिम्मेदार बताया। दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण को जरूरी बताते हुए चेयरमैन ने कहा कि बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए विभिन्न योजनाओं जैसे आरडीएसएस और बिजनेस प्लान के जरिए बहुत अधिक धनराशि का निवेश किया गया है।चेयरमैन ने कहा कि निवेश पर समुचित रिटर्न के लिए कार्मिकों और अधिकारियों के प्रयास के बाद भी जरूरी सफलता नहीं मिल पाई है। उन्होंने कहा कि ट्रांसफॉर्मरों की क्षतिग्रस्तता अब भी 10% से अधिक है। नेवर पेड उपभोक्ता और लॉन्ग अनपेड उपभोक्ताओं से राजस्व वसूली भी आशा के मुताबिक नहीं हो पा रही है। पावर कॉरपोरेशन का दावा:
- 2020-21 में 8,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी और लॉस फंडिंग शासन की ओर से की गई। 2024-25 में 46,000 करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी का आकलन किया गया है। कॉरपोरेशन ने कहा कि अगर यही स्थिति रही तो सब्सिडी और लॉस फंडिंग 2025-26 में बढ़कर 50-55,000 करोड़ और 2026-27 में बढ़कर 60-65,000 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है।
- पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम में वाणिज्यिक पैरामीटर्स सबसे अधिक खराब हैं। पूर्वांचल में प्रति यूनिट विद्युत आपूर्ति पर 4.33 रुपये की हानि हो रही है। दक्षिणांचल में प्रति यूनिट विद्युत आपूर्ति पर 3.99 रुपये की हानि हो रही है, जो प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों के औसत 3.25 रुपये प्रति यूनिट से काफी अधिक है।
- पूर्वांचल और दक्षिणांचल के रिफॉर्म में कर्मचारियों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा। इसकी व्यवस्था विधिक रूप से की जाएगी। हर कर्मचारी को तीन विकल्प दिये जाएंगे और कर्मचारी अपनी सुविधा अनुसार विकल्प चुन सकते हैं।
- महंगे बिजली खरीद करार और सरकारी विभागों का राजस्व बकाया घाटे के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार।
- उत्पादन निगम से विद्युत वितरण निगमों को 4.17 रुपये/यूनिट, सेंट्रल सेक्टर से औसतन 4.78 रुपये/यूनिट, निजी घरानों से 5.45 रुपये/यूनिट की दर से और शॉर्ट टर्म पावर परचेज के माध्यम से 7.31 रुपये/यूनिट की दर से बिजली खरीदी जा रही है। अन्य माध्यमों से 14.204 रुपये/यूनिट की दर तक बिजली खरीदी जा रही है।
- महंगे खरीद करारों से विद्युत वितरण निगमों को उत्पादन निगम की तुलना में लगभग 9521 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
- 2024-25 में एक यूनिट भी बिजली नहीं खरीदी गई। मगर लगभग 6761 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा।
- महंगे बिजली क्रय करारों के चलते विद्युत वितरण निगमों को कुल लगभग 16282 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है।
- सरकारी विभागों पर लगभग 14 हजार करोड़ रुपये बिजली राजस्व के बकाया हैं।
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