नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अदालत का व्यवस्थित और गरिमापूर्ण कामकाज तभी सुनिश्चित होता है जब पीठ और बार एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर काम करें। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 26 सितंबर के अपने आदेश को संशोधित करते हुए और उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग के वकील के आचरण से संबंधित 'प्रतिकूल टिप्पणियों' को हटाते हुए यह बात कही।
आयोग पर लगा जुर्माना हटाया
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले आयोग की याचिका को खारिज कर दिया था। पीठ ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए आयोग पर 26 सितंबर को लगाए गए दो लाख रुपये के जुर्माने को भी हटा दिया।
हमेशा सचेत रहता है कोर्ट
पीठ ने कहा कि यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि एक बार जब अदालत ने अपना इरादा जता दिया और वकील से आगे कोई दलील रखने से परहेज करने को कहा, तो उसका सम्मान किया जाना अपेक्षित है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट द्वारा आदेश उचित विचार-विमर्श के बाद ही पारित किए जाते हैं तथा कोर्ट हमेशा प्रस्तुत निवेदनों के प्रति सचेत रहता है तथा सावधानीपूर्वक जांच किए बिना मामलों को खारिज नहीं करता है।
क्या था मामला
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत का व्यवस्थित और गरिमापूर्ण कामकाज तभी सुनिश्चित होता है जब पीठ और बार एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर काम करते हैं। शीर्ष अदालत ने आयोग द्वारा दायर एक अर्जी पर यह आदेश पारित किया, जिसमें 26 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान बहस करने वाले वकील के आचरण से संबंधित टिप्पणियों को हटाने का अनुरोध किया गया।
इन लोगों ने दिया आश्वासन
अर्जी में पीठ से 26 सितंबर को आयोग पर लगाए गए जुर्माने को माफ करने का भी आग्रह किया गया। पीठ ने कहा कि आयोग ने उसके समक्ष बिना शर्त और सद्भावनापूर्वक माफी मांगी थी। पीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर अर्जी को खारिज कर दिया जाता लेकिन वकील ने खेद व्यक्त किया और सीनियर वकील और 'सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन' के अध्यक्ष विकास सिंह समेत बार के पदाधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।
पीठ ने की टिप्पणी
पीठ ने कहा, 'वकील द्वारा बिना शर्त माफी मांगने तथा इस पीठ के समक्ष उनकी यह पहली घटना होने पर विचार करते हुए, हम इस अर्जी को इस चेतावनी के साथ स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि भविष्य में ऐसा आचरण दोहराया नहीं जाना चाहिए। राज्य चुनाव आयोग की खारिज की थी याचिका
हाई कोर्ट ने 26 सितंबर को उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आयोग के एक स्पष्टीकरण पर रोक लगाने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी। आयोग ने कहा था कि किसी उम्मीदवार का नामांकन पत्र केवल इसलिए खारिज नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका नाम एक से अधिक ग्राम पंचायतों की मतदाता सूची में शामिल है।
आयोग पर लगा जुर्माना हटाया
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले आयोग की याचिका को खारिज कर दिया था। पीठ ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए आयोग पर 26 सितंबर को लगाए गए दो लाख रुपये के जुर्माने को भी हटा दिया।
हमेशा सचेत रहता है कोर्ट
पीठ ने कहा कि यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि एक बार जब अदालत ने अपना इरादा जता दिया और वकील से आगे कोई दलील रखने से परहेज करने को कहा, तो उसका सम्मान किया जाना अपेक्षित है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट द्वारा आदेश उचित विचार-विमर्श के बाद ही पारित किए जाते हैं तथा कोर्ट हमेशा प्रस्तुत निवेदनों के प्रति सचेत रहता है तथा सावधानीपूर्वक जांच किए बिना मामलों को खारिज नहीं करता है।
क्या था मामला
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत का व्यवस्थित और गरिमापूर्ण कामकाज तभी सुनिश्चित होता है जब पीठ और बार एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर काम करते हैं। शीर्ष अदालत ने आयोग द्वारा दायर एक अर्जी पर यह आदेश पारित किया, जिसमें 26 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान बहस करने वाले वकील के आचरण से संबंधित टिप्पणियों को हटाने का अनुरोध किया गया।
इन लोगों ने दिया आश्वासन
अर्जी में पीठ से 26 सितंबर को आयोग पर लगाए गए जुर्माने को माफ करने का भी आग्रह किया गया। पीठ ने कहा कि आयोग ने उसके समक्ष बिना शर्त और सद्भावनापूर्वक माफी मांगी थी। पीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर अर्जी को खारिज कर दिया जाता लेकिन वकील ने खेद व्यक्त किया और सीनियर वकील और 'सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन' के अध्यक्ष विकास सिंह समेत बार के पदाधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।
पीठ ने की टिप्पणी
पीठ ने कहा, 'वकील द्वारा बिना शर्त माफी मांगने तथा इस पीठ के समक्ष उनकी यह पहली घटना होने पर विचार करते हुए, हम इस अर्जी को इस चेतावनी के साथ स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि भविष्य में ऐसा आचरण दोहराया नहीं जाना चाहिए। राज्य चुनाव आयोग की खारिज की थी याचिका
हाई कोर्ट ने 26 सितंबर को उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आयोग के एक स्पष्टीकरण पर रोक लगाने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी। आयोग ने कहा था कि किसी उम्मीदवार का नामांकन पत्र केवल इसलिए खारिज नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका नाम एक से अधिक ग्राम पंचायतों की मतदाता सूची में शामिल है।
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