अगली ख़बर
Newszop

US-China Trade Dynamics: डील या ड्रामा? न चीन झुका, न अमेरिका जीता, फिर भारत पर ये संकट के बादल कैसे?

Send Push
नई दिल्‍ली: अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर चल रही तनातनी में अहम मोड़ आया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया मुलाकात ने सालों से बढ़ते तनाव को कम करने का संकेत दिया है। लेकिन, भारत समेत दुनिया भर के उभरते बाजारों के लिए असली मायने इस बात में हैं कि आगे क्या होता है। हालांकि, एक बात साफ है कि दुनिया में शक्ति का संतुलन तेजी से बदला है। भारत के सामने भी इसने कई तरह की चुनौती खड़ी कर दी है। वह इस पावर प्‍ले का अहम हिस्‍सा है।

बाजार के जानकारों का मानना है कि इस घटना से एक बड़ी सीख मिलती है। वह यह है कि शक्ति का संतुलन बदल रहा है। मार्केट एक्सपर्ट मनीष सिंह कहते हैं, 'सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिका को आगे भी चीन को रियायतें देनी पड़ेंगी। जो हुआ है उससे बिल्कुल साफ है। इसे अमेरिका की जीत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। यह बस समझदारी का नतीजा है कि कुछ चीजें ऐसी हैं जो अमेरिका कर नहीं सकता या जिसमें वह अच्छा नहीं है और उसे समझौता करना ही पड़ेगा। चीन दिखा रहा है कि बराबरी के तौर पर बातचीत कैसे की जाती है।'

सिंह ने यह भी कहा कि भले ही भारत अभी बराबरी की हैसियत से बातचीत करने की स्थिति में न हो। लेकिन, नई दिल्ली के लिए मैसेज साफ है, 'चीन ने रास्ता दिखाया है कि अगर आप खुद को अंदरूनी तौर पर मजबूत बनाते हैं और आपके पास विकल्प होते हैं तो आप भी एक दिन बराबरी पर बातचीत कर सकते हैं... अमेरिका के पास वे सारे मजबूत पत्ते नहीं हैं जो लोग सोचते हैं, क्योंकि पिछले 10-20 सालों में बहुत कुछ बदल गया है।'

क्‍या भारत के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी?यह बहुत ही अहम सवाल है। भारत को चीन से दूर जा रही ग्‍लोबल कंपनियों से काफी फायदा हुआ है। खासकर ट्रंप के पहले कार्यकाल में शुरू हुई टैरिफ वॉर के दौरान। लेकिन, वाशिंगटन और बीजिंग के बीच अगर सहमति बनती है तो क्या भारत की सप्लाई-चेन का फायदा खतरे में पड़ जाएगा? मनीष सिंह मानते हैं कि ऐसा हो सकता है। उन्होंने समझाया कि अमेरिकी कंपनियां या पश्चिमी देश चीन से इसलिए हटे थे क्योंकि उन्हें टैरिफ वॉर का डर था। यह बहुत साफ है कि अमेरिका उस युद्ध को जीत नहीं सकता।

सिंह के मुताबिक, जो कुछ अभी हो रहा है उसे 'सब्सक्रिप्शन डिप्लोमेसी' कहा जा सकता है। इसका मतलब है बड़े समझौतों के बजाय छोटे, रिन्‍यूएबल सौदे। उन्‍होंने कहा, 'आप छोटे-छोटे सौदे देखेंगे, जैसे कल हमने देखे। इन्‍हें मैं सब्सक्रिप्शन डिप्लोमेसी कहता हूं क्योंकि आपके पास 12 महीने का सौदा होता है जिसे रिन्‍यू किया जा सकता है। इसमें शर्तों को बदलने की गुंजाइश है। यह अवधि समाप्त होने से पहले ही रिन्‍यूअल के लिए आ सकता है।'

सिंह ने यह भी कहा कि ऐसे छोटे-छोटे सौदे उभरते बाजारों के लिए फायदेमंद हैं। उनके मुताबिक, 'अगर यह सामान्य बात बन जाती है कि रियायतें दी जाएंगी और सौदे होंगे तो यह उभरते बाजारों, खासकर चीन और अन्य देशों के लिए बहुत अच्छी खबर है... अगर इससे व्यापार बढ़ता है तो यह भारत सहित सभी के लिए अच्छी खबर है।'

विदेशी निवेशक 2025 में भारतीय इक्विटी से लगभग ₹1.9 लाख करोड़ निकाल चुके हैं। इससे वैश्विक जोखिम लेने की क्षमता पर चिंताएं बढ़ गई हैं। लेकिन, सिंह का मानना है कि व्यापक आर्थिक तस्वीर अभी भी उत्साहजनक है। उन्‍होंने कहा, 'अगर हम फेड के कल या बुधवार के फैसले को देखें तो यह बताता है कि फेड ने अभी यह तय नहीं किया है कि ब्याज दरें कहां जाएंगी... मेरा मानना है कि फेड दिसंबर में ब्याज दरें घटाएगा और हालात आसान होंगे।'

उन्होंने हालिया निकासी के बावजूद विकास की संभावनाओं पर आशावाद जाहिर किया। वह बोले, 'मैं विकास को लेकर बहुत उत्साहित हूं। मुझे लगता है कि फेड गलत है। महंगाई कोई समस्या नहीं है... मेरे लिए अमेरिका और चीन के बीच तनाव कम होना बहुत सकारात्मक होगा।'

जी2 दु‍न‍िया की ओर से बढ़ रही है ग्‍लोबल अर्थव्‍यवस्‍था
सिंह का तर्क है कि ग्‍लोबल अर्थव्यवस्था 'जी2 दुनिया' की ओर बढ़ रही है। यह एक ऐसी दुनिया है जहां अमेरिका और चीन को एक-दूसरे पर निर्भर रहकर सह-अस्तित्व में रहना होगा। उन्‍होंने कहा, 'मैंने इसे कभी युद्ध के रूप में नहीं देखा। मैंने इसके बारे में लिखा है कि हम एक जी2 दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं जहां अमेरिका और चीन को सह-अस्तित्व में रहना होगा... अमेरिका के पास मजबूत स्थिति नहीं है और मेरे लिए यह बहुत सकारात्मक है क्योंकि बहुत सारा निवेश जो रुका हुआ था... अब फिर से प्रवाहित होगा।'

बाजार इसे बड़ी सफलता नहीं, बल्कि तनाव कम होने के तौर पर देख रहे हैं। सिंह का मानना है कि बाजार इसे एक लंबी प्रक्रिया की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं, न कि अचानक समाधान के रूप में। उन्‍होंने कहा, 'मैं कहूंगा कि बाजार इसे एक जारी रहने वाले सौदे के रूप में देख रहा है। मेरा मतलब है, मुझे नहीं लगता कि बाजार वास्तव में सोचता है कि कोई बड़ा सौदा हुआ है।'

उन्होंने समझाया, 'आप वास्तव में यह देख रहे हैं कि क्या तनाव कम हुआ है, क्या भविष्य में चर्चा करने और सहमत होने का रास्ता तय हो गया है और यही हुआ है। तो इसने बाजार पर क्या असर डाला है, वह यह है कि नवंबर में समय सीमा आने के कारण जो जोखिम बढ़ा था, वह चला गया है, भले ही वह तीन महीने या छह महीने के लिए ही क्यों न हो।'

चीन की तैयारी ने द‍िलाई जीत
सिंह के अनुसार, चीन की तैयारी ने उसे बढ़त दिलाई है। 'इसमें कोई शक नहीं... वे विशेषज्ञ हैं। वे इसकी उम्मीद कर रहे थे। जब पहली बार टैरिफ वॉर शुरू हुई तो वे वापस चले गए और उन्होंने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी और सात साल बाद वे जीत रहे हैं।' उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अनिश्चितता में कमी अपने आप में जोखिम वाली संपत्तियों के लिए सकारात्मक है।

सिंह ने कहा, 'मुझे बाजार में गिरावट नहीं दिखती और कोई भी रियायतें और अधिक रियायतें जो स्क्रीन पर स्पष्ट न हों लेकिन एक बयान में आती हैं, शायद बाजार की मदद करेंगी। मुझे लगता है कि अधिक रियायतें दी गई हैं।"

कुल मिलाकर अमेरिका-चीन संबंधों का यह नया अध्याय शायद कोई 'बड़ा सौदा' न हो। लेकिन, बाजारों और नीति निर्माताओं के लिए यह कुछ उतना ही मूल्यवान है। भारत के लिए मैसेज यह है कि घरेलू ताकत का निर्माण जारी रखें, वैश्विक व्यापारिक गठबंधनों में लचीलापन बनाए रखें और टकराव के बजाय बातचीत से परिभाषित हो रही दुनिया में लंबी अवधि के खेल के लिए तैयार रहें।
न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें