पेरिस/नई दिल्ली: क्या भारत का 114 राफेल फाइटर जेट का सौदा अटक गया है? दावा किया गया है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय ने राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर भारतीय वायुसेना के प्रस्ताव को अधूरा कहा है। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि "114 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए भारतीय वायु सेना के "स्टेटमेंट ऑफ केस" यानि एसओसी को "अधूरा" बताते हुए, रक्षा मंत्रालय राफेल युद्धक विमान के निर्माता, डसॉल्ट के साथ "आगे की चर्चा" करना चाहता है।"
डसॉल्ट एविएशन, जिससे भारत ने पहले 36 राफेल फाइटर जेट खरीदे थे और हालिया समय में भारत ने राफेल मरीने के लिए भी डसॉल्ट के साथ सौदा किया है, कहा जा रहा है कि 114 राफेल के लिए वो कई प्लाइंट्स पर परेशान कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, नए सौदे में सरकार का मकसद भारत की आत्मनिर्भरता के मुताबिक, ज्यादा से ज्यादा विमानों का उत्पादन भारत में ही करना है। इसके तहत पहले इस बात पर विचार किया जाएगा कि कितने विमान फ्लाई-अवे कंडीशन में आएंगे और कितने भारत में, किसी स्थानीय पार्टनर के सहयोग से निर्मित होंगे। इसके लिए डसॉल्ट से नये सिरे से बात करनी होगी।
114 राफेल को लेकर सौदा अटक गया?
टाइम्स नॉउ की रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय और सरकार के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, इस बार की प्रमुख मांग यह है कि स्थानीय सामग्री और स्वदेशी हिस्सेदारी सिर्फ 10-15 प्रतिशत तक सीमित न रहे, बल्कि इसे 75 प्रतिशत या उससे ज्यादा तक बढ़ाया जाए। इसका मकसद भारतीय रक्षा क्षेत्र की कंपनियों, सरकारी और निजी दोनों, को इस बड़े सौदे का हिस्सा बनाना है। इसके अलावा, डसॉल्ट ने हैदराबाद में रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) केंद्र स्थापित करने की इच्छा जताई है, जिससे विमानों की लंबे समय तक सेवा और भारतीय कर्मियों के कौशल विकास में मदद मिलेगी।
जबकि भारतीय वायुसेना ने इससे पहले जो 36 राफेल फाइटर जेट को लेकर सरकार-से-सरकार स्तर पर डील के तहत खरीदारी की थी, उस तरह का सौदा भारत अब नहीं करना चाहता है। यह सौदा पूरी तरह से अलग होगा, जिसमें उत्पादन, लागत और जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर नए सिरे से बातचीत करनी होगी। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारतीय वायुसेना ने पहले एक्सटेंशिव ट्रायल्स के बाद राफेल के साथ साथ यूरोफाइटर टायफून को भी अपनी आखिरी लिस्ट में रखा था। जबकि अमेरिकी F-16 और F-18, स्वीडिश ग्रिपेन या रूसी विमानों पर विचार नहीं किया गया था। लेकिन बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि रक्षा मंत्रालय और डसॉल्ट के बीच दो बड़े मतभेद थे। पहला, अगर ये विमान भारत में किसी सरकारी कंपनी द्वारा बनाए जाने थे, तो देरी की जिम्मेदारी कौन लेगा? दूसरा, विमानों के उत्पादन की वास्तविक लागत पर भी काफी ज्यादा मतभेद थे।
क्या फ्रांसीसी कंपनी कर रही है बदमाशी?
इसके अलावा अधिकारियों ने ये भी बताया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी 60 प्रतिशत तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के लिए तो तैयार है, लेकिन भारत 75 प्रतिशत से कम टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए तैयार नहीं है। कुछ डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि डसॉल्ट को लगता है कि अगर भारत को 75 प्रतिशत से ज्यादा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया गया तो भारत के पास वो क्षमता है कि कुछ सालों में ही वो राफेल को टक्कर देने लायक नये विमानों का निर्माण कर सकता है, जिससे राफेल का मार्केट खराब हो जाएगा। इसीलिए सवाल ये हैं कि क्या राफेल सौदा रूक गया है? और अगर वाकई ऐसा है तो भारतीय वायुसेना के लिए समस्या का समधान कैसे होगा?
वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या 30 तक पहुंच चुकी है, जबकि हर हाल में संख्या 42 स्क्वार्डर्न होनी चाहिए। भारत के पास जो मौजूदा फाइटर जेट्स हैं, जैसे कि राफेल, मिराज, जगुआर, MiG-29 और Su-30MKI, इनमें से सुखोई और राफेल ही एडवांस जेट्स हैं। तेजस की डिलीवरी शुरू हो गई है, लेकिन 180 तेजस विमानों की डिलीवरी अगले 10 सालों में हो जाएगी, कहना मुश्किल है। इसीलिए भारतीय वायुसेना ने जल्द से जल्द 114 राफेल खरीदना चाहती है, ताकि वायुसेना में कम होते विमानों की समस्या से निजात पाया जा सके।
क्या राफेल खरीदने से इनकार भी कर सकता है भारत?
नवभारत टाइम्स से बात करते हुए भारतीय वायुसेना के एक रिटायर्ड अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर इसके पीछे चार वजहों के होने की संभावना जताई है।
1- रक्षा मंत्रालय वायुसेना की आवश्यकताओं की बारीकियों को जानना चाहता है।
2- जब LCA Mk-1A, LCA Mk-2 और AMCA विकसित किए जा रहे हैं, तो राफेल की आवश्यकता क्यों है?
3- इस सौदे की समयसीमा, आवश्यकता और उपयोगिता का पता लगाने की कोशिश हो रही है। कि जब तक भारतीय विमान बनने लगेंगे, तब तक राफेल भी आएगा तो क्या इतना महंगा सौदा करना चाहिए? इसके बीच तुलना की कोशिश हो सकती है।
4- भारत इस बात को लेकर गंभीर हो कि राफेल सौदे से स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम पर कितना असर पड़ेगा?
वहीं, हमने जब उनसे पूछा कि क्या इसका मतलब ये तो नहीं है कि भारत असल में नया राफेल खरीदना ही नहीं चाहता है? तो उन्होंने कहा कि "नहीं। ऐसा नहीं है।" उन्होंने कहा कि "फंड सीमित हैं और आयात अकसर स्वदेशी कार्यक्रमों पर गंभीर असर डालते हैं। स्वदेशी लड़ाकू विमानों को बनाने में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। एचएएल ने हाल ही में एलसीए एमके-1ए की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 24 कर दी है, जो 4.5 पीढ़ी के विमानों के करीब है। इसके अलावा अगले साल तेजस-एमके-2 के प्रोटोटाइप भी पहली उड़ान भरेगा, जो क्षमता के मामले में राफेल के करीब होगा। शायद इसीलिए राफेल को लेकर भारत झुकने के मूड में ना हो।"
डसॉल्ट एविएशन, जिससे भारत ने पहले 36 राफेल फाइटर जेट खरीदे थे और हालिया समय में भारत ने राफेल मरीने के लिए भी डसॉल्ट के साथ सौदा किया है, कहा जा रहा है कि 114 राफेल के लिए वो कई प्लाइंट्स पर परेशान कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, नए सौदे में सरकार का मकसद भारत की आत्मनिर्भरता के मुताबिक, ज्यादा से ज्यादा विमानों का उत्पादन भारत में ही करना है। इसके तहत पहले इस बात पर विचार किया जाएगा कि कितने विमान फ्लाई-अवे कंडीशन में आएंगे और कितने भारत में, किसी स्थानीय पार्टनर के सहयोग से निर्मित होंगे। इसके लिए डसॉल्ट से नये सिरे से बात करनी होगी।
114 राफेल को लेकर सौदा अटक गया?
टाइम्स नॉउ की रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय और सरकार के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, इस बार की प्रमुख मांग यह है कि स्थानीय सामग्री और स्वदेशी हिस्सेदारी सिर्फ 10-15 प्रतिशत तक सीमित न रहे, बल्कि इसे 75 प्रतिशत या उससे ज्यादा तक बढ़ाया जाए। इसका मकसद भारतीय रक्षा क्षेत्र की कंपनियों, सरकारी और निजी दोनों, को इस बड़े सौदे का हिस्सा बनाना है। इसके अलावा, डसॉल्ट ने हैदराबाद में रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) केंद्र स्थापित करने की इच्छा जताई है, जिससे विमानों की लंबे समय तक सेवा और भारतीय कर्मियों के कौशल विकास में मदद मिलेगी।
जबकि भारतीय वायुसेना ने इससे पहले जो 36 राफेल फाइटर जेट को लेकर सरकार-से-सरकार स्तर पर डील के तहत खरीदारी की थी, उस तरह का सौदा भारत अब नहीं करना चाहता है। यह सौदा पूरी तरह से अलग होगा, जिसमें उत्पादन, लागत और जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर नए सिरे से बातचीत करनी होगी। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारतीय वायुसेना ने पहले एक्सटेंशिव ट्रायल्स के बाद राफेल के साथ साथ यूरोफाइटर टायफून को भी अपनी आखिरी लिस्ट में रखा था। जबकि अमेरिकी F-16 और F-18, स्वीडिश ग्रिपेन या रूसी विमानों पर विचार नहीं किया गया था। लेकिन बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि रक्षा मंत्रालय और डसॉल्ट के बीच दो बड़े मतभेद थे। पहला, अगर ये विमान भारत में किसी सरकारी कंपनी द्वारा बनाए जाने थे, तो देरी की जिम्मेदारी कौन लेगा? दूसरा, विमानों के उत्पादन की वास्तविक लागत पर भी काफी ज्यादा मतभेद थे।
क्या फ्रांसीसी कंपनी कर रही है बदमाशी?
इसके अलावा अधिकारियों ने ये भी बताया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी 60 प्रतिशत तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के लिए तो तैयार है, लेकिन भारत 75 प्रतिशत से कम टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए तैयार नहीं है। कुछ डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि डसॉल्ट को लगता है कि अगर भारत को 75 प्रतिशत से ज्यादा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया गया तो भारत के पास वो क्षमता है कि कुछ सालों में ही वो राफेल को टक्कर देने लायक नये विमानों का निर्माण कर सकता है, जिससे राफेल का मार्केट खराब हो जाएगा। इसीलिए सवाल ये हैं कि क्या राफेल सौदा रूक गया है? और अगर वाकई ऐसा है तो भारतीय वायुसेना के लिए समस्या का समधान कैसे होगा?
वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या 30 तक पहुंच चुकी है, जबकि हर हाल में संख्या 42 स्क्वार्डर्न होनी चाहिए। भारत के पास जो मौजूदा फाइटर जेट्स हैं, जैसे कि राफेल, मिराज, जगुआर, MiG-29 और Su-30MKI, इनमें से सुखोई और राफेल ही एडवांस जेट्स हैं। तेजस की डिलीवरी शुरू हो गई है, लेकिन 180 तेजस विमानों की डिलीवरी अगले 10 सालों में हो जाएगी, कहना मुश्किल है। इसीलिए भारतीय वायुसेना ने जल्द से जल्द 114 राफेल खरीदना चाहती है, ताकि वायुसेना में कम होते विमानों की समस्या से निजात पाया जा सके।
क्या राफेल खरीदने से इनकार भी कर सकता है भारत?
नवभारत टाइम्स से बात करते हुए भारतीय वायुसेना के एक रिटायर्ड अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर इसके पीछे चार वजहों के होने की संभावना जताई है।
1- रक्षा मंत्रालय वायुसेना की आवश्यकताओं की बारीकियों को जानना चाहता है।
2- जब LCA Mk-1A, LCA Mk-2 और AMCA विकसित किए जा रहे हैं, तो राफेल की आवश्यकता क्यों है?
3- इस सौदे की समयसीमा, आवश्यकता और उपयोगिता का पता लगाने की कोशिश हो रही है। कि जब तक भारतीय विमान बनने लगेंगे, तब तक राफेल भी आएगा तो क्या इतना महंगा सौदा करना चाहिए? इसके बीच तुलना की कोशिश हो सकती है।
4- भारत इस बात को लेकर गंभीर हो कि राफेल सौदे से स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम पर कितना असर पड़ेगा?
वहीं, हमने जब उनसे पूछा कि क्या इसका मतलब ये तो नहीं है कि भारत असल में नया राफेल खरीदना ही नहीं चाहता है? तो उन्होंने कहा कि "नहीं। ऐसा नहीं है।" उन्होंने कहा कि "फंड सीमित हैं और आयात अकसर स्वदेशी कार्यक्रमों पर गंभीर असर डालते हैं। स्वदेशी लड़ाकू विमानों को बनाने में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। एचएएल ने हाल ही में एलसीए एमके-1ए की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 24 कर दी है, जो 4.5 पीढ़ी के विमानों के करीब है। इसके अलावा अगले साल तेजस-एमके-2 के प्रोटोटाइप भी पहली उड़ान भरेगा, जो क्षमता के मामले में राफेल के करीब होगा। शायद इसीलिए राफेल को लेकर भारत झुकने के मूड में ना हो।"
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