बेतिया: भारत में 2026 में प्रस्तावित परिसीमन को लेकर सियासी सरगर्मी तेज़ होती जा रही है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता ने मंगलवार को बेतिया परिसदन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट किया कि पार्टी संवैधानिक अधिकार और परिसीमन सुधार के मुद्दे पर किसी भी हाल में पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने कहा, हम इस संकल्प को पूरा करके ही दम लेंगे।”
प्रवक्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों के परिसीमन का प्रावधान करते हैं। 1951, 1961 और 1971 की जनगणनाओं के आधार पर ही अब तक लोकसभा सीटों का निर्धारण किया गया है, लेकिन 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए फ्रीज के कारण यह प्रक्रिया बाधित हो गई। यह फ्रीज 42वें संविधान संशोधन के जरिये लागू किया गया और 2001 में इसे 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया।
उन्होंने कहा कि 2009 में सीमांकन तो हुआ, लेकिन लोकसभा सीटों की कुल संख्या 543 पर स्थिर रही। मौजूदा स्थिति में उत्तर भारत की बड़ी आबादी को कम प्रतिनिधित्व मिल रहा है। प्रवक्ता के अनुसार, “दक्षिण भारत में औसतन 21 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट है, जबकि उत्तर भारत में यह संख्या 31 लाख तक पहुँच गई है। यह ‘एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य’ की संवैधानिक भावना के साथ सीधा छल है।”
उन्होंने यह भी बताया कि यह असमानता विकास निधियों के वितरण को भी प्रभावित करती है। हर सांसद को मिलने वाली 5 करोड़ की सालाना निधि दक्षिण के राज्यों में कम आबादी पर खर्च हो रही है, जबकि उत्तर भारत में यह निधि ज्यादा आबादी के बीच बँटती है।
इतिहास का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आजादी से पहले उत्तर भारत, विशेष रूप से बिहार, ने अंग्रेजों के दमन, प्राकृतिक आपदाओं और महामारी का अत्यधिक शिकार होकर धीमी जनसंख्या वृद्धि का सामना किया। वहीं, दक्षिण भारत में 1881 से 1971 के बीच जनसंख्या में तीन गुना वृद्धि दर्ज हुई, जिसका लाभ उन्हें लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ने के रूप में मिला।
“जब दक्षिण की आबादी बढ़ रही थी, तब उन्हें अधिक सीटें दी गईं। लेकिन अब जब उत्तर भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, तो उसे नजरअंदाज किया जा रहा है,” उन्होंने कहा। उन्होंने इस स्थिति को “राजनीतिक भेदभाव” करार देते हुए कहा कि यह न केवल उत्तर भारतीय राज्यों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि लोकतांत्रिक असमानता को भी जन्म देता है।
उन्हें उम्मीद है कि 2026 के बाद होने वाले परिसीमन में जनसंख्या के अनुसार सीटों का पुनः निर्धारण होगा और उत्तर भारत को उसका वाजिब प्रतिनिधित्व मिलेगा। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि बिहार समेत उत्तर भारतीय राज्यों ने शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है, और अब किसी प्रकार का भेदभाव सहन नहीं किया जाएगा।
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