छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 39 साल पुराने रिश्वतखोरी के मामले में एक व्यक्ति को राहत प्रदान की है। आरोपी जगेश्वर प्रसाद अवस्थी पर बकाया बिल बनाने के लिए 100 रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप था।
निचली अदालत का फैसलाइस मामले की निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और सजा सुनाई थी। हालांकि, आरोपी ने उच्च न्यायालय में अपील की थी और अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन किया।
हाईकोर्ट का फैसलाहाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव और अभियोजन पक्ष की ओर से ठोस प्रमाण न पेश करने के आधार पर निचली अदालत की सजा को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष रिश्वत मांगने का ठोस सबूत प्रस्तुत करने में विफल रहा, इसलिए आरोपी को न्यायिक राहत दी जाती है।
न्यायिक टिप्पणीहाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी के मामले में ठोस और विश्वसनीय सबूत होना आवश्यक है। बिना प्रमाण के आरोपों पर सजा सुनाना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा।
कानूनी और सामाजिक पहलूविशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका सबूत आधारित न्याय सुनिश्चित करने के लिए सतर्क है। साथ ही, यह सार्वजनिक और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए यह संदेश भी है कि कोर्ट में आरोप साबित करने के लिए ठोस सबूत अनिवार्य हैं।
👉 कुल मिलाकर, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 39 साल पुराने मामले में आरोपी को सबूतों के अभाव में राहत देकर न्यायिक प्रक्रिया और सबूत आधारित निर्णय की भूमिका को महत्व दिया है।
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