भोपाल, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Madhya Pradesh में अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर सोशल मीडिया पर शेयर हो रही टिप्पणियों को राज्य सरकार ने भ्रामक और असत्य करार दिया है. Madhya Pradesh सरकार ने बुधवार को ओबीसी आरक्षण से संबंधित हलफनामे को लेकर स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया है, जिसमें कहा गया है कि ये वायरल जानकारी न तो राज्य के हलफनामे का हिस्सा है और न ही किसी आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा.
दरअसल, सोशल मीडिया पर यह खबर थी कि ओबीसी आरक्षण मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष Madhya Pradesh सरकार ने वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी की है. ऐसी कुछ टिप्पणियां ऐसे वायरल की जा रही थीं. इनको लेकर Madhya Pradesh सरकार ने अपना पक्ष रखा है. सरकार के मुताबिक कि राज्य शासन के संज्ञान में यह आया है कि कतिपय शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर यह कहते हुए कुछ टिप्पणियां-सामग्री वायरल की जा रही है कि वह टिप्पणियां माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत Madhya Pradesh शासन के ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है.
स्पष्टीकरण में कहा गया है कि शासन द्वारा उक्त शरारती सामग्री का गंभीरता से परीक्षण कराया गया है. उच्चतम न्यायालय के समक्ष पिछड़ा वर्ग आरक्षण के प्रचलित प्रकरण में अभिलेख के प्रारंभिक परीक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि उल्लेखित सोशल मीडिया की टिप्पणियां एवं कथन पूर्णतः असत्य, मिथ्या एवं भ्रामक है एवं दुष्प्रचार की भावना से किए गए हैं. यह स्पष्ट किया जाता है कि वायरल की जा रही सामग्री मध्यप्रदेश शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य की किसी घोषित या स्वीकृत नीति अथवा निर्णय का भाग हैं.
प्रथम दृष्टया यह ज्ञात हुआ है कि वस्तुतः उल्लेखित सामग्री Madhya Pradesh राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामजी महाजन द्वारा प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन (भाग-1) का हिस्सा हैं. उक्त आयोग का गठन दिनांक 17-11-1980 को किया गया था. आयोग द्वारा दिनांक 22-12-1983 को अपना अंतिम प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य शासन को प्रेषित किया था. राज्य शासन ने उच्चतम न्यायालय में ओबीसी आरक्षण संबंधित प्रकरण में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के विभिन्न प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किए हैं, जो शासन के अभिलेखों में सुरक्षित हैं. इन प्रतिवेदनों में महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ-साथ 1994 से 2011 तक के वार्षिक प्रतिवेदन तथा वर्ष 2022 का राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का प्रतिवेदन भी सम्मिलित है. महाजन आयोग का उक्त प्रतिवेदन उच्च न्यायालय के समक्ष भी अभिलेख का भाग रहा है. अतः उच्चतम न्यायालय में भी उक्त प्रतिवेदन स्वतः ही न्यायिक अभिलेख का हिस्सा है.
स्पष्टीकरण में कहा गया है कि Madhya Pradesh सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ एवं सामाजिक सद्भावना के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध है. शासन स्पष्ट करता है कि वायरल की जा रही सामग्री शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य शासन के किसी स्वीकृत या आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा है. यह उल्लेखनीय है कि महाजन रिपोर्ट में 35 फीसदी आरक्षण की अनुशंसा की गई थी, जबकि राज्य शासन ने 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य शासन का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है.
भारतवर्ष में आरक्षण को लेकर विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के प्रतिवेदन, समय-समय पर गठित आयोग के रिपोर्ट एवं वार्षिक प्रतिवेदन तथा अन्य आधिकारिक सामग्री जो पूर्व से ही शासकीय अभिलेखों का भाग है एवं विभिन्न प्रकरणों में अभिलेखों का भी भाग है, न्यायालय के समक्ष हमेशा से प्रस्तुत की जाती रही हैं. ऐसे एकेडमिक विश्लेषण एवं समय-समय पर गठित विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के अत्यंत विस्तृत प्रतिवेदनों एवं रिपोर्ट के किसी एक भाग को, बिना किसी संदर्भ के स्पष्ट किए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के रूप में प्रस्तुत किया जाना एक निंदनीय प्रयास है. इसके संबंध में राज्य शासन द्वारा गंभीरता से जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.
(Udaipur Kiran) तोमर
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