Lung Cancer Causes : लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि फेफड़ों का कैंसर सिर्फ सिगरेट या तंबाकू का सेवन करने वालों को होता है। लेकिन अब यह बात पूरी तरह सच नहीं रही। आजकल उन लोगों में भी फेफड़ों का कैंसर देखा जा रहा है, जो कभी धूम्रपान नहीं करते। खासकर महिलाओं में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है, चाहे वे बड़े शहरों में रहती हों या छोटे कस्बों में। भले ही सिगरेट अभी भी फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इसके अलावा 6 और कारण हैं, जो इस खतरनाक बीमारी को जन्म दे रहे हैं। आइए, इन कारणों को समझते हैं।
जहरीला प्रदूषण बन रहा है खतराभारत उन देशों में शामिल है, जहां हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है। दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ जैसे शहरों में AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का स्तर खतरनाक है। गाड़ियों का धुआं, फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण और अन्य कारक हवा को जहरीला बना रहे हैं। इस जहरीली हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (माइक्रो पार्टिकल्स) और हाइड्रोकार्बन लंबे समय तक फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे फेफड़ों की कोशिकाओं में बदलाव शुरू हो जाता है, भले ही व्यक्ति ने कभी सिगरेट को हाथ भी न लगाया हो।
रसोई का धुआं भी जिम्मेदारशहरों में, चाहे बड़े हों या छोटे, ज्यादातर घरों की रसोई में वेंटिलेशन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती। एग्जॉस्ट फैन या चिमनी का इस्तेमाल बहुत कम होता है। गैस पर खाना पकाने या तेल को तेज आंच पर गर्म करने से निकलने वाला धुआं फेफड़ों के लिए हानिकारक होता है। लंबे समय तक इस धुएं के संपर्क में रहने से इनडोर हवा की गुणवत्ता खराब होती है, जिसके कारण खासकर महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
सेकेंड हैंड स्मोक का खतराजब परिवार में कोई पुरुष सदस्य धूम्रपान करता है, तो उसका धुआं घर की महिलाओं और बच्चों के फेफड़ों तक पहुंचता है। यह सेकेंड हैंड स्मोक बिना सिगरेट पीए भी फेफड़ों में टार जमा कर देता है। इससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
जेनेटिक कारणों का असरकई युवा, खासकर महिलाओं में, बिना किसी स्पष्ट कारण के फेफड़ों की कोशिकाओं में म्यूटेशन होता है। यह म्यूटेशन तेजी से बढ़ता है और फेफड़ों का कैंसर पैदा करता है। यह तब भी हो सकता है, जब व्यक्ति धूम्रपान या प्रदूषण जैसे जोखिमों से दूर हो।
हैवी मेटल और केमिकल का खतराजो लोग हैवी मेटल्स जैसे एस्बेस्टस, रेडॉन या डीजल जैसे केमिकल्स के संपर्क में रहते हैं, उन्हें फेफड़ों के कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। खासकर खराब वेंटिलेशन वाले माहौल में काम करने वाले लोग इस खतरे की जद में आते हैं।
देरी से पता चलनानॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर का पता अक्सर देर से चलता है। लगातार खांसी या सांस फूलने को लोग अस्थमा, टीबी या एलर्जी समझकर ट्रीटमेंट लेते हैं। इस वजह से कैंसर का पता सही समय पर नहीं चल पाता और यह तीसरे स्टेज तक पहुंच जाता है।
अब स्मोकिंग ही नहीं, ये कारण भी जिम्मेदारअब यह धारणा गलत साबित हो चुकी है कि सिर्फ धूम्रपान करने वालों को ही फेफड़ों का कैंसर होता है। ऊपर बताए गए कारण भी इस बीमारी को बढ़ा रहे हैं। इसलिए अगर आपको अपने शरीर में नीचे बताए गए लक्षण दिखें, तो तुरंत कैंसर की जांच करवाएं।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षणफेफड़ों के कैंसर के कुछ खास लक्षण हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर आप धूम्रपान नहीं करते, लेकिन इनमें से कुछ लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और कैंसर की जांच करवाएं।
- लगातार खांसी, जो और गंभीर होती जा रही हो।
- खांसी के साथ खून आना।
- सांस लेने में दिक्कत।
- सांस लेते समय घरघराहट की आवाज।
- आवाज में बदलाव या गले में खराश।
- भूख न लगना।
- बिना कारण वजन कम होना।
- थकान महसूस होना।
- खाना या थूक निगलने में परेशानी।
- चेहरे या गर्दन में सूजन।
- बार-बार निमोनिया या फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां।
इनके अलावा अगर आपको लगातार बीमारी, सीने में दर्द या खांसी की वजह से तकलीफ हो रही है, तो तुरंत कैंसर की जांच करवाएं। सही समय पर इलाज शुरू होने से जान बच सकती है।
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