यामीन विकट, मुरादाबाद। मुरादाबाद में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां कोर्ट ने एक व्यक्ति को बेगुनाह करार देने के बाद उसकी संपत्ति वापस करने का आदेश दिया, लेकिन डेढ़ साल बाद भी वह अपनी संपत्ति से वंचित है। यह मामला उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधि (निवारण) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज एक केस से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट ने अभियुक्त को बरी कर दिया था। लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर क्यों उसकी संपत्ति अभी तक लौटाई नहीं गई?
कोर्ट का फैसला और संपत्ति की जब्तीमुरादाबाद की निचली अदालत ने 15 फरवरी 2024 को अपने फैसले में अभियुक्त सादिक, जो रौनक अली का बेटा है, को गैंगस्टर एक्ट के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सादिक की जब्त की गई चल और अचल संपत्ति को तुरंत वापस किया जाए। लेकिन, इस आदेश के बावजूद, संपत्ति अभी तक सादिक को नहीं लौटाई गई। सादिक के वकील मोहम्मद शाकिर और शशि कांत शुक्ला ने कोर्ट को बताया कि संपत्ति अभी भी जब्त है, क्योंकि राज्य सरकार ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है।
सरकार का रवैया और कोर्ट की नाराजगीराज्य के वकील ने इस बात से इनकार नहीं किया कि संपत्ति अभी तक लौटाई नहीं गई है। इस पर हाई कोर्ट के जज, माननीय मनोज बाजज ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब अभियुक्त को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है और कोर्ट ने संपत्ति वापस करने का स्पष्ट आदेश दिया है, तो केवल अपील दायर होने के आधार पर संपत्ति को जब्त रखना गलत है। कोर्ट ने इसे गैरकानूनी बताते हुए कहा कि इससे सादिक को अनुचित नुकसान हो रहा है।
डेढ़ साल से अटका आदेशहाई कोर्ट ने यह भी बताया कि निचली अदालत का आदेश 15 फरवरी 2024 को दिया गया था, और अब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी इस आदेश का पालन नहीं हुआ। कोर्ट ने इसे गंभीर माना और कहा कि यह संपत्ति के मालिक के अधिकारों का हनन है। इससे न केवल सादिक को आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि उनकी संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार भी छीना जा रहा है।
जिला मजिस्ट्रेट को नोटिसअधिवक्ता मोहम्मद शाकिर ने कहा कि कोर्ट ने मुरादाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे इस मामले में अपनी सफाई पेश करें। जज ने आदेश दिया कि जिला मजिस्ट्रेट व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताएं कि कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी पूछा कि सादिक को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिम्मेदार अधिकारी की सैलरी से हर्जाना क्यों न वसूला जाए।
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